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28/10/2024

कॉमरेड अन्जू ने आरोप लगाया है कि बुलंदशहर कांड साबित करता है कि भगवा फासीवादी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में भगवा बलात्कारियों से महिलाएं सुरक्षित नहीं है

अक्तूबर 28, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज
बुलंदशहर कांड साबित करता है कि भगवा फासीवादी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में भगवा बलात्कारियों से महिलाएं  बिल्कुल सुरक्षित नहीं है -  कॉमरेड अंजू


चित्रकूट नर्स गैंगरेप की घटना की अखिल भारतीय क्रांतिकारी महिला संगठन ने घोर निन्दा की

लखनऊ । अखिल भारतीय क्रांतिकारी महिला संगठन की केन्द्रीय समिति सदस्य एवं उत्तर प्रदेश राज्य संयोजक  कॉमरेड अन्जू ने आरोप लगाया है कि बुलंदशहर कांड साबित करता है कि भगवा फासीवादी योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में भगवा बलात्कारियों से महिलाएं सुरक्षित नहीं है। उन्होंने कहा कि बुलंदशहर में 23अक्टूबर को राधा स्वामी सत्संग ब्यास आश्रम में 13 साल की दो बच्चियों के साथ रेप का मामला सामने आया है। दोनों पीड़ित बच्चियों की मेडिकल जांच 24अक्टूबर को बुलंदशहर के सरकारी अस्पताल हुई। मेडिकल जांच एवं रिपोर्ट के अनुसार एक पीड़ित बच्ची 6 महीने की प्रेगनेंट हैं। स्थानीय भाजपा विधायक और नेताओं के दबाव में पुलिस एफआईआर दर्ज करने में हिलाहवाला करती रही,12 घंटे विलम्ब से पुलिस ने एफआईआर दर्ज की। आरोपी सेवादार मोहनलाल राजपूत भाजपा विधायक के दामाद का काफी करीबी व्यक्ति हैं। कानूनन गर्भवती बच्ची का गर्भपात भी सम्भव नहीं।मनुवादी/ ब्राम्हणवादी हिंदुत्व के झंडाबरदार बलात्कारियों ने बच्ची की जिन्दगी को नरक बना दिया। उन्होंने आरोप लगाया कि मठों, मन्दिरो में साधु संतों के रूप में  कई भगवा मनुवादी अपराधी, बलात्कारी बैठे हुए हैं।उन्होंने चित्रकूट नर्स गैंगरेप की घटना को अमानवीय कृत्य करार देते हुए घोर निन्दा की और दोषियों को फौरन गिरफ्तार करने और कठोर सजा देने की मांग की। उन्होंने  कहा की  राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के ताजा आंकड़े बताते हैं कि महिला अपराध के मामले में उत्तर प्रदेश शर्मनाक ढंग से अव्वल नंबर पर है। उत्तर प्रदेश की लगभग प्रत्येक जिले में महिलाओं के साथ बलात्कार, हत्या, अपहरण की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं ।और इन घटनाओं में पीड़ित महिलाओं और उनके परिवारों को न्याय नहीं मिल रहा है। आमतौर  पर पुलिस थानों  में महिला हिंसा  की घटनाओं में  एफआईआर  तक दर्ज न की जा रही  है बल्कि कई घटनाओं में तो पुलिस का रवैया पीड़िता( अगर वह गरीब मेहनतकश हो,दलित/ उत्पीड़ित या अल्पसंख्यक समुदाय की हो तो उसकी खैर नहीं ) के प्रति  असंवेदनशील रहता है। मुख्यमंत्री  योगी आदित्यनाथ महिला सशक्तिकरण की कितनी ही बातें कर लें लेकिन महिलाओं के साथ अपराध की घटनाएं यह बता रही हैं की यूपी में महिलाएं बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं। 
भारत के संविधान की शपथ लेकर मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ यूपी में बुल्डोजर से न्याय( या अन्याय ) करने के लिए जाने जाते हैं , ठोक दो की राजनीति में विश्वास करते  हैं, लेकिन आज तक मुख्यमंत्री यौन उत्पीड़न के आरोपी यूपी से सांसद बृज भूषण शरण सिंह के खिलाफ लिए कोई बयान तक नहीं दे सके। उन्होंने कहा की भाजपा के आईं टी सेल से जुड़े आईआईटी बीएचयू के बलात्कारियों को जब हाल में रिहा किया गया उनका स्वागत भी संघीयों ने  किया।  तब भी मुख्यमंत्री की खामोशी यह दर्शाती हैदर्ज़ा की  सांसद, मंत्री और रसूखदार लोग अगर यौन शोषण, बलात्कार के आरोपी होंगे  तो उन्हें योगी सरकार का  संरक्षण मिलेगा और बुल्डोजर एवं ठोक  दो  की राजनीति आम  जनता के लिए के लिए ही  होगी।
कॉमरेड अंजू ने कहा की महिला सुरक्षा और सम्मान के लिए सरकार को चाहिए की गांव से लेकर शहरों तक में  कार्यस्थल पर यौन हिंसा के खिलाफ शिकायत कमेटी का गठन करे ताकि महिलाओं के अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके।
उन्होंने ने कहा कि योगी राज में महिलाएं अपने ऊपर हर प्रकार की हिंसा झेल रही हैं। सरकार  के स्मार्ट परियोजनाओं के कारण गरीब महिलाओं और उनके परिवारों को शोषण और दमन झेलना पड़ रहा है; यहां तक की पीने के साफ पानी के लिए भी महिलाओं को  आज भी कई किलोमीटर दूर  पैदल चलना पड़ता है। बढ़ती महंगाई से गरीब महिलाएं प्राइवेट लोन लेने के लिए मजबूर कर दी जा रही हैं और  कर्ज न चुकाने पर  उनका परिवार आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो रहा है। महिलाओं के लिए स्थाई रोजगार देने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं हैं जिससे  कि वह अपनी जिंदगी को सम्मानजनक तरीके से जी सके।
उन्होंने  सवाल उठाया कि जन जन तक स्वास्थ्य सुविधाओं को पहुंचाने वाली आशा बहनों  से दिन रात मेहनत तो सरकार  करवा रही है लेकिन योगी सरकार उन्हें  राज्य कर्मचारी का दर्जा देने से क्यों पीछे हट रही हैं?
उन्होंने कहा की  की योगी सरकार की  उत्तर प्रदेश में नफ़रत और बुल्डोजर की राजनीति ने आग लगा दी है। बहराइच में एक युवक की हत्या और भीड़ द्वारा  अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ आगजनी और निर्दोष महिलाओं और बच्चों का पलायन, इसका ताजा उदाहरण है। उन्होंने कहा  बुल्डोजर से कभी न्याय नहीं हो सकता है इसलिए  भारतीय संविधान को सही इच्छाशक्ति से  अमल में लाने की और उसके सही क्रियान्वयन से हाशिए पर रहने वालों और पीड़ितों को न्याय दिलाने की जरूरत है।

                    कॉमरेड अन्जू
संयोजक अखिल भारतीय क्रांतिकारी महिला संगठन उत्तर प्रदेश
दिनांक 26/10/2024

27/09/2024

बलिया रेलवे स्टेशन: विकास के नाम पर भ्रष्टाचार का खुलासा

सितंबर 27, 2024 0
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# बलिया रेलवे स्टेशन: विकास के नाम पर भ्रष्टाचार का खुलासा

 बलिया रेलवे स्टेशन: विकास के नाम पर भ्रष्टाचार का खुलासा


भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में स्थित बलिया शहर इन दिनों सुर्खियों में है, लेकिन दुर्भाग्य से अच्छे कारणों से नहीं। शहर का नया रेलवे स्टेशन, जिसे करोड़ों रुपये की लागत से बनाया जा रहा था, अब भ्रष्टाचार और घटिया निर्माण कार्य का प्रतीक बन गया है।

## क्या हुआ बलिया रेलवे स्टेशन पर?


हाल ही में हुई हल्की बारिश ने बलिया के नवनिर्मित रेलवे स्टेशन की वास्तविक स्थिति को उजागर कर दिया है। स्टेशन का गुंबद, जो इसकी वास्तुकला का एक प्रमुख आकर्षण था, बारिश के कारण धराशायी हो गया। यह घटना न केवल निर्माण की गुणवत्ता पर सवाल खड़े करती है, बल्कि इस परियोजना में हुए संभावित भ्रष्टाचार की ओर भी इशारा करती है।

## परियोजना का विवरण


- **लागत**: करोड़ों रुपये (सटीक राशि की पुष्टि की जानी चाहिए)
- **उद्देश्य**: बलिया शहर को एक आधुनिक और सुविधाजनक रेलवे स्टेशन प्रदान करना
- **निर्माण अवधि**: (यहां निर्माण की शुरुआत और समाप्ति की तारीखें दी जा सकती हैं)


## मुख्य चिंताएं


1. **निर्माण की गुणवत्ता**: गुंबद का गिरना स्पष्ट रूप से दिखाता है कि निर्माण में उचित सामग्री और तकनीकों का उपयोग नहीं किया गया।

2. **सार्वजनिक सुरक्षा**: यदि स्टेशन का एक हिस्सा इतनी आसानी से गिर सकता है, तो यह यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है।

3. **धन का दुरुपयोग**: करोड़ों रुपये के निवेश के बावजूद, परिणाम अत्यंत निराशाजनक है, जो संसाधनों के गलत प्रबंधन की ओर इशारा करता है।

4. **जवाबदेही का अभाव**: यह स्पष्ट नहीं है कि इस परियोजना की निगरानी और गुणवत्ता नियंत्रण के लिए कौन जिम्मेदार था।

## आगे की राह


इस घटना ने कई महत्वपूर्ण प्रश्न उठाए हैं:

1. **जांच की आवश्यकता**: एक स्वतंत्र जांच की तत्काल आवश्यकता है ताकि इस विफलता के पीछे के कारणों का पता लगाया जा सके।

2. **जवाबदेही सुनिश्चित करना**: जो भी अधिकारी या ठेकेदार इस घटना के लिए जिम्मेदार हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।

3. **निर्माण की समीक्षा**: पूरे स्टेशन के निर्माण की समीक्षा की जानी चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई अन्य हिस्सा खतरे में नहीं है।

4. **पारदर्शिता**: भविष्य की परियोजनाओं में अधिक पारदर्शिता की आवश्यकता है ताकि इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके।

## निष्कर्ष


बलिया रेलवे स्टेशन की यह घटना भारत में सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण में व्याप्त गहरी समस्याओं को उजागर करती है। यह केवल एक इमारत के गिरने की कहानी नहीं है, बल्कि यह प्रणालीगत भ्रष्टाचार, लापरवाही, और जनता के प्रति जवाबदेही की कमी का प्रतीक है। 

आशा है कि यह घटना सरकार और संबंधित अधिकारियों के लिए एक जाग्रति का क्षण साबित होगी, और वे भविष्य में ऐसी परियोजनाओं की गुणवत्ता और निष्पादन पर अधिक ध्यान देंगे। जनता की सुरक्षा और सार्वजनिक धन का सही उपयोग सुनिश्चित करना हर सरकार का प्राथमिक कर्तव्य होना चाहिए।

(नोट: यह ब्लॉग पोस्ट उपलब्ध जानकारी के आधार पर लिखी गई है। किसी भी आधिकारिक जांच या बयान के लिए, कृपया संबंधित अधिकारियों या समाचार स्रोतों से संपर्क करें।)

28/08/2024

एस.एल.ठाकुर अध्यक्ष राष्ट्रीय सामाजिक जनक्रांति पार्टी की राय

अगस्त 28, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज.     
एस.एल.ठाकुर राष्ट्रीय अध्यक्ष 

🙏🌹👉 अति आवश्यक सूचना, समय निकालकर अवश्य पढ़ें क्योंकि यह सारी समस्या आपके जीवन से जुड़ी हुई है। इसके निदान का प्रयास हम सभी बड़ी ही मजबूती से करने जा रहे हैं। ध्यान रखें, इस मिशन में जाति और धर्म का कोई स्थान नहीं है। हम सारी चर्चाएं मानवीय मूल्यों के संरक्षण के अंतर्गत आरंभ करेंगे, जैसा कि राजनीतिक पार्टी और संगठन का उद्देश्य है। सम्मानित साथियों, जैसा कि आप सभी जानते हैं। आज देश के अंदर अनियंत्रित महंगाई, भ्रष्टाचार, अत्याचार, अन्याय, शैक्षणिक असमानता, आर्थिक असामान्यता, सामाजिक असमानता राजनीतिक असामान्यता, शासनिक एवं प्रशासनिक स्तर पर अधिकारों का दुरुपयोग, जी एस टी कर कानून, फुटकर के क्षेत्र में एफ डी आई, इंश्योरेंस सेक्टर में एफ डी आई, बैंकिंग सेक्टर में एफ डी आई, रक्षा के क्षेत्र में एफ डी आई, निजीकरण, शिक्षा अधिनियम 2020 यातायात अधिनियम व्हीकल एक्ट अधिनियम 2019 जैसी जटिल समस्याएं शासनिक एवं प्रशासनिक स्तर पर दर्ज फर्जी मुकदमे, क्षेत्रीय समस्या जैसे शुद्ध पेयजल की समस्या, शिवर की समस्या, सफाई की समस्या, स्वास्थ्य की समस्या इन सारी विसंगतियों के कारण समाज पूरी तरह से परेशान है। इससे राहत कैसे मिलेगी यही होगा चर्चा का विषय और समस्या के निदान पर निर्णय। जोकि पूरी शक्ति से आपको राहत देने का कार्य करेगा। सभी राजनीतिक एवं सामाजिक संगठनो में आजादी के बाद से इसका अभाव रहा है। राजनीतिक और सामाजिक संगठनों का आचरण आपको कमजोर कर शोषण के अंतर्गत अपने को पुष्पित और फल्लवित करने का प्रयास रहा है जिसका दुष्परिणाम आपके सामने है। आए हम सभी मिलकर एक इंकलाब की तर्ज पर सुरक्षा कवच बनाते हैं जिसको की कोई वेद ना सके चाहे वह कितना भी पड़ा अन्यायी और अत्याचारी क्यों ना हो, इसके लिए आपको सर्वप्रथम संगठन की सदस्यता लेना नितांत आवश्यक होगा। जिससे कि आपका संकल्प का प्रदर्शन हो सके कि आप आमूल चूल परिवर्तन के पक्ष में खड़ा होना चाहते हैं जिससे कि आपको राहत मिले आज पूरा समाज पूरी तरह से प्रभावित है लेकिन कोई भी सामाजिक संगठन राजनीतिक संगठन इस विषय पर गंभीर चिंतन के साथ आगे बढ़ने को तैयार नहीं हैं कारण की राष्ट्रीय समाजवादी जनक्रांति पार्टी, राजनीतिक पार्टी और नागरिक अधिकार मंच सामाजिक संगठन ने यह निर्णय लिया है कि प्रत्येक माह एक निश्चित बैठक सदस्यों की होगी इसमें इस विषय पर गंभीर चिंतन होगा और नागरिकों की समस्याओं को आमंत्रित करते हुए उस पर शक्त कार्रवाई की पहल की जाएगी। जरूरत पड़ने पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया के अंतर्गत बात ना बनने पर न्यायिक प्रक्रिया के अंतर्गत भी कार्रवाई की जाएगी। हम सभी का उद्देश्य संविधान और कानून के दायरे में मानवीय मूल्यों का संरक्षण होगा। आप सभी से अनुरोध है कि उक्त बैठक हेतु अपनी सदस्यता, राजनीतिक या सामाजिक संगठन से अवश्य ले जिससे कि उक्त बैठक में आप अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर इसका लाभ उठा सके। एस, एल, ठाकुर राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय समाजवादी जनक्रांति पार्टी।🙏

क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच की प्रेस विज्ञप्ति

अगस्त 28, 2024 0

जनता की आवाज, ब्रेकिंग न्यूज प्रेस विज्ञप्ति 
बाबूलाल यादव क्रांतिकारी 


 *क्रांतिकारी* *सांस्कृतिक* *मंच* ( *कसम* ) *ने* *केरल* *की* *फिल्म* *इंडस्ट्री* *में* *यौन* *शौषण* *पर* *केंद्रित* " *हेमा* *कमिटी* " * *की* *अनुशंसाओं* *को* *लागू* *करने* *और* *यौन* *उत्पीडन* *के* *आरोपियों* *पर* *कड़ी* *कार्यवाही* *करने* *की* *मांग* *की* 


नई दिल्ली,28 अगस्त 2024. क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) ने केरल फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीडन की जांच के लिए बने " हेमा कमिटी" की रपट को पारदर्शी तरीके से लागू करने की मांग केरल सरकार से की।साथ ही केरल फिल्म इंडस्ट्री में यौन उत्पीडन के आरोपियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही करने की मांग भी राज्य सरकार से की।



विदित हो कि केरल सरकार ने हेमा कमेटी का गठन तुरंत नहीं किया था। केरल में एक मशहूर अभिनेत्री के साथ यौन उत्पीड़न के बाद, WCC सदस्यों द्वारा फिल्म उद्योग में महिलाओं के खिलाफ शोषण और हिंसा को उजागर करने के लिए किए गए बहुत प्रयास के बाद ही हेमा आयोग का गठन किया गया था। रिपोर्ट 2019 में बनाई गई थी और इसे जारी होने में लगभग 5 साल लग गए। इससे भी बदतर यह है कि इस रिपोर्ट के जारी होने में देरी के कारण कई महिला कलाकारों को न्याय से वंचित किया जा रहा है। WCC सदस्यों द्वारा किए गए गहन प्रयास का ही नतीजा है कि यह रिपोर्ट अब सामने आ रही है। यह खुलासा हुआ है कि रिपोर्ट से कई पैराग्राफ और पेज छिपाए गए हैं।


इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद, कई प्रमुख अभिनेताओं पर आरोप लगे। पहला आरोप एक बंगाली अभिनेत्री  रीताभरी चक्रवर्ती ने रंजीत नामक एक बहुत प्रसिद्ध मलयाली निर्देशक के खिलाफ लगाया था । लेकिन आरोप के बाद, केरल  वाम मोर्चा सरकार के सांस्कृतिक और युवा मामलों के मंत्री साजी चेरियन द्वारा जारी किया गया पहला बयान पीड़िता के खिलाफ था और निर्देशक का समर्थन करता हुआ दिखाई दिया जो बहुत निराशाजनक है।  लेकिन आरोपों के बाद उन्होंने मीडिया से कहा कि उन्होंने रिपोर्ट पढ़ी ही नहीं, यह कितनी गैरजिम्मेदाराना प्रतिक्रिया है। दुर्व्यवहार के सबसे ज्यादा आरोप अब माकपा विधायक मुकेश पर लगे हैं।


जब यह रिपोर्ट पहली बार सामने आई थी, तब कहा गया था कि इस पर कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होगी। लेकिन कड़े हस्तक्षेप के कारण ही सरकार को जांच के लिए एक टीम नियुक्त करनी पड़ी।


सबसे बड़ी बात यह है कि केरल के कुख्यात "अभिनेत्री  पर यौन हमला मामले" की पीड़िता को अभी भी न्याय नहीं मिल पाया है, जिसे अपने ही एक सह-कलाकार से और भी बदतर शोषण और हमले का सामना करना पड़ा था, यह बात सरकार की विश्वसनीयता को खत्म करती है। इसलिए, क्या गारंटी है कि दूसरों को भी न्याय मिलेगा?

यहां सिर्फ केरल फिल्म इंडस्ट्री की बात नहीं है बॉलीवुड सहित देश के हर क्षेत्र में मर्दवादी  घोर महिला विरोधी मानसिकता के चलते महिलाओं को  हर पल असुरक्षा और हैवानियत के साए में जीना पड़ता है।कोलकाता में युवा डॉक्टर के खिलाफ  हुए दरिंदगी के बाद पूरे देश में आज बारह साल पहले निर्भया मामले की तरह महिला उत्पीड़न के खिलाफ जबरदस्त जागृति देखने को मिल रही है। यह भी तथ्य है कि सबसे ज्यादा महिला विरोधी  क्रूर अत्याचार, पूरे देश में पिछले दस सालों से अधिक समय से सत्तासीन संघी मनुवादी/ ब्राम्हणवादी फासीवादी ताकतों के राज में हो रहे हैं।  आरएसएस फासिस्ट ही  सबसे ज्यादा महिला विरोधी मर्दवादी हैं और मनुस्मृति आधारित हिंदुराष्ट्र बनाने के लिए कटिबद्ध हैं। जिस मनुस्मृति के  अनुसार महिलाओं को दलितों आदिवासियों और उत्पीड़ित वर्गों की तरह मानव का दर्ज़ा नहीं दिया गया है।

क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम) ,देश भर में महिला उत्पीड़न और घोर मर्दवादी सोच के खिलाफ ,पीड़िताओं के हक में न्याय की मांग कर रहे जन उभार के साथ मजबूती से खड़ा है।


तुहिन, असीम गिरी 

अखिल भारतीय संयोजकद्वय

क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच (कसम)

20/08/2024

डॉ. राधेश्याम यादव की राय में लड़के और लड़कियों में क्या अंतर है

अगस्त 20, 2024 1
जनता की आवाज, ब्रेकिंग न्यूज बेटीया बेटिया बहुत हो रहा है जरा सा सोचो बेटिया स्वतन्त्र रूप से स्वछन्द घुमती है और खुशी मनाती है हमारा धर्म क्या कहता है जरा उसपर भी सोचों धर्म बनाने वाले वेवकुफ थे क्या - . - -
आप रात मे घूमते हो क्या सोचते हो
घटना सभी के साथ हो सकता है
बरेली की घटना भूल गये क्या 2001 मे क्या हुआ था बेटे के साथ
इस लिए बेटा हो चाहे बेटी नियंत्रण मै रहना चाहिए इस विषय मे आप क्या सोचते है दिल पर हाथ रख कर सच्चाई बतायें
पूर्व प्रोफेसर एवं समाज विज्ञानी, उत्तर प्रदेश सरकार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का बजट कॉरपोरेट के लिए सुनहरा द्वार और जनता के लिए खाली पेट! कुछ सोचिए

अगस्त 20, 2024 0
जनता की आवाज, ब्रेकिंग न्यूज *मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का पहला बजट: मेहनतकश जनता पर आर्थिक बोझ बढ़ाते हुए पूँजीपतियों के और ज़्यादा मुनाफ़ों का इंतज़ाम – संपादकीय*

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा सातवाँ बजट पेश करने से पहले मोदी सरकार द्वारा दिए गए संकेतों में ही साफ़ हो गया था कि इस बार के बजट में मेहनतकश जनता के लिए कुछ नहीं होगा। 2023-24 के आर्थिक सर्वेक्षण ने स्पष्ट कर दिया था कि अथाह मुनाफ़े कमा रहे देश के अरबपतियों की दौलत को मोदी सरकार बिल्कुल हाथ नहीं लगाएगी, बल्कि मेहनतकश जनता को मिलने वाली सुविधाओं पर कटौती की जाएगी, पूँजीपतियों को और ज़्यादा छूटें देकर उनका मुनाफ़ा बढ़ाने के मौक़े पैदा किए जाएँगे। रोज़गार पैदा करने की कोई भी ज़ि‍म्मेदारी नहीं उठाएगी, यानी बढ़ती बेरोज़गारी से निपटने के लिए सरकार ख़ुद कुछ नहीं करेगी, बल्कि प्राइवेट सेक्टर को नौकरियाँ पैदा करने की अपीलें करेगी और इसी बहाने उन्हें धन लुटाया जाएगा।

बजट क्या है?

बजट सरकार की एक साल की आमदनी और ख़र्चे का अनुमानित लेखा-जोखा होता है। सरकार की आमदनी और ख़र्चों का वितरण इस बात पर निर्भर करता है कि राज्यसत्ता पर किस वर्ग का राज है। चूँकि मौजूदा पूँजीवादी ढाँचे में पूँजीपति सरकार चलाते हैं, इसलिए बजट भी इनके ही हितों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। पूँजीपतियों के हितैषी बजट में

मेहनतकश जनता से आमदनी छीनकर पूँजीपतियों के हवाले करने, उनके मुनाफ़े बढ़ाने का ख़ाका तैयार किया जाता है। इसीलिए ऐसे बजट में सरकार की आय का मुख्य स्रोत मेहनतकश जनता पर लगाया जाने वाला प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष टैक्स होता है, जिससे होने वाली आमदनी को बाद में बड़े पूँजीपतियों और परजीवी राज्य मशीनरी को क़ायम रखने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

बजट की विस्तृत चर्चा से पहले सरकार के आमदनी के स्रोतों के बारे में बात करना ज़रूरी है, ताकि देखा जा सके कि सरकार अपनी आय के लिए मुख्य तौर पर मेहनतकशों पर लगाए जाने वाले टेक्सों पर निर्भर है। बजट में बताया गया है कि यूनियन सरकार (भारत सरकार) का कुल ख़र्चा इस वित्तीय साल के लिए 48.20 लाख करोड़ रुपए होगा। लेकिन इसके उलट सरकार की आमदनी महज़ 32.07 लाख करोड़ रुपए ही है। यानी सरकार का राजकोषीय घाटा 16.13 लाख करोड़ रुपए का रहेगा। अगर सरकार की आमदनी ख़र्चों से कम होगी, तो वह बकाया राशि कहाँ से आएगी? जवाब है – क़र्ज़ों और अन्य देनदारियों से। सरकार की ब्याज़ देनदारी बढ़कर 11.62 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है। सीधे शब्दों में कहें तो सरकार मौजूदा देनदारियों को भविष्य की पीढ़ियों पर क़र्ज़ा थोपकर पूरा कर रही है। सरकार की आय का एक तिहाई हिस्सा लोगों पर बोझ डालने वाले ऐसे उधारों से आएगा। इसके अलावा अन्य 28 फ़ीसदी राशि जी.एस.टी., कस्टम और उत्पाद करों (एक्साइज़ शुल्क) से आएगी। यानी सरकार की आमदनी का 63% सीधे आम लोगों की बचत, विभिन्न टैक्सों से आएगा। पूँजीपतियों पर लगाए जाने वाले कारपोरेट टैक्स या मध्यम/अमीर वर्ग पर लगने वाले इनकम टैक्स से सरकार की आमदनी का केवल 30-35% ही आता है। बड़े पूँजीपतियों की आमदनी पिछले सालों में दोगुनी से भी ज़्यादा बढ़ जाने के बावजूद मोदी सरकार उन पर कोई नया टैक्स नहीं लगा रही है, बल्कि कटौती कर रही है। अब आगे बजट की चर्चा पर चलते हैं।

बजट में मेहनतकश जनता की सुविधाओं में कटौती

हर साल के बजट में सरकार द्वारा दावा किया जाता है कि मोदी सरकार लगातार बुनियादी ढाँचे पर होने वाले बजट ख़र्चे को लगातार बढ़ा रही है। साल 2022-23 में पूँजी ख़र्चा 7.20 लाख करोड़ था, जो 2023-24 में बढ़कर 9.48 लाख करोड़ हो गया और इस बार के बजट में और बढ़कर 11.11 लाख करोड़ रुपए कर दिया गया है। बुनियादी ढाँचे पर सरकारी ख़र्चे के असल मक़सद को समझने की ज़रूरत है। सड़कों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और अन्य बुनियादी ढाँचे पर होने वाला यह सरकारी ख़र्चा भी असल में पूँजीपतियों के मुनाफ़े बढ़ाने के लिए ख़र्च की जाने वाली ही रक़म है, क्योंकि बुनियादी ढाँचे के ये सभी प्रोजेक्ट सार्वजनिक-निजी भागीदारी के तहत चलाए जाएँगे, यानी सरकार इन प्रोजेक्टों को बनाकर पूँजीपतियों के हवाले कर देगी। दूसरा, ऐसे प्रोजेक्ट पूँजीपतियों की लागत घटाने का काम करते हैं, जिसके ज़रिए भी कुल मिलाकर उन्हें अपने मुनाफ़े बढ़ाने में ही मदद मिलती है।

सरकार अपनी आमदनी मेहनतकश जनता पर टैक्स लगाकर जुटाती है। लेकिन क्या सरकार इस आमदनी से मेहनतकश जनता की भलाई के लिए कुछ कर रही है? नहीं! इसे हम अलग-अलग शर्तों के तहत सरकार द्वारा किए जाने वाले ख़र्चों के ज़रिए समझ सकते हैं।

इस बजट में मोदी सरकार ने पेंशन और विकलांगता योजनाओं के लिए 2023-24 में रखे 9,652 करोड़ रुपए के बजट में इस साल बिल्कुल भी बढ़ौतरी नहीं की। अगर इसमें महँगाई का हिस्सा जोड़ दिया जाए तो असल में इस योजना का बजट कम ही हुआ है। आगे, एक तरफ़ तो मोदी सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून योजना के तहत मुफ़्त राशन को बढ़ाने की बात करती है, लेकिन वहीं दूसरी तरफ़ इस बजट में सरकार ने खाद्य सब्सिडी को पिछले साल के 2.12 लाख करोड़ से घटाकर 2.05 लाख करोड़ रुपए कर दिया है।

मोदी सरकार द्वारा जनकल्याण योजनाओं पर की गई कटौती को अगर पिछले साल की कटौतियों की रोशनी में देखें, तो और भी भयानक तस्वीर सामने आती है। पिछले 8-9 साल में खाद्य सब्सिडी, शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य समाज कल्याण संबंधी ख़र्चों में बड़े पैमाने पर कटौती की गई है। उदाहरण के लिए खाद्य सब्सिडी जोकि 2015-16 में कुल बजट का 7.70 फ़ीसदी हुआ करती थी, अब 2024-25 में घटकर केवल 4.26 फ़ीसदी रह गई है। इसी तरह समाज कल्याण ख़र्चे 1.70 फ़ीसदी से घटकर कुल बजट का 1.10 फ़ीसदी, शिक्षा पर ख़र्चा 3.75 फ़ीसदी से घटकर 2.50 फ़ीसदी, स्वास्थ्य पर ख़र्चा 1.91 फ़ीसदी से घटकर 1.85 फ़ीसदी रह गया है। यानी जनकल्याण की कोई ऐसी मद नहीं है, जिसमें पिछले 8-9 साल में मोदी हुकूमत द्वारा कटौती ना की गई हो।

अगर स्वास्थ्य की बात करें, तो सरकार ने इस साल के बजट में 1.09 लाख करोड़ रुपए रखे हैं, जो पिछले साल के रखे गए 1.04 लाख करोड़ रुपए के बजट से मामूली बढ़ौतरी है। लेकिन सरकार की नालायक़ी देखिए कि पिछले साल के 1.04 लाख करोड़ रुपए के स्वास्थ्य बजट में से भी पूरे ख़र्चे नहीं गए और संशोधित करके केवल 91,633 करोड़ रुपए ही स्वास्थ्य बजट में लगाए गए। आज भारत में सरकारी अस्पतालों और जो सरकारी अस्पताल हैं भी उनमें डॉकटरों की भारी कमी है। अगर गाँवों, पिछड़े इलाक़ों को देखें तो कई-कई किलोमीटर तक कोई ढंग का प्राथमिक क्लीनिक भी मौजूद नहीं है, अस्पताल की तो बात ही क्या करेंगे! आज भी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में डॉक्टरों, स्टाफ़ और दवाओं की भारी कमी है, लेकिन इसे बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से कोई घोषणा नहीं की गई है। इसी तरह एनम नर्सों की संख्या में भी 2014 की तुलना में कमी आई है, जबकि ज़रूरत इस समय इसे और बढ़ाने की थी। पिछले दिनों में कितनी ही रिपोर्टें आई हैं कि सरकार द्वारा आयुष्मान योजना के बकाया ना देने के कारण अस्पतालों में मरीजों के इलाज नहीं किए जा रहे, लेकिन इस योजना का विस्तार करने के लिए सरकार के पास कुछ नहीं है। जहाँ तक दवाओं का सवाल है, तो सभी जानते हैं कि निजी कंपनियों द्वारा मरीजों को महँगी दवाओं के नाम पर बुरी तरह से लूटा जाता है। इसके बावजूद मोदी सरकार ने बजट में 2,143 करोड़ रुपए निजी कंपनियों के लिए रख दिए हैं, लेकिन सस्ती दवाएँ बनाने वाली सरकारी कंपनियाँ, जिनका मोदी हुकूमत ने पूरी तरह से भट्ठा बिठा दिया है, के लिए कोई घोषणा नहीं हुई। एक ओर तो ‘विश्वगुरु’ कहलाने वाली भारत सरकार ‘सर्वव्यापी स्वास्थ्य सुविधाओं’ के कार्यक्रम पर हस्ताक्षर करके विश्व स्तर पर झूठी धूम मचा रही है, दूसरी तरफ़ स्वास्थ्य क्षेत्र और कुल घरेलू उत्पादन का डेढ़ फ़ीसदी से भी कम ख़र्च करके लोगों को इलाज के लिए बड़े-बड़े मगरमच्छों के सामने फेंक रही है।

शिक्षा के क्षेत्र में सरकार पहले ही ‘नई शिक्षा नीति 2020’ लागू कर शिक्षा को मेहनतकशों के बच्चों से छीनने की घातक योजना लेकर आई थी। कहने को शिक्षा बजट में लगभग 8% की बढ़ौतरी करके 1.20 लाख करोड़ तक किया गया है, लेकिन असल में स्कूली शिक्षा और साक्षरता का बजट 72,474 करोड़ रुपए से महज़ 1% बढ़ाकर 73,008 करोड़ रुपए ही किया गया है, जो महँगाई को देखते हुए असल में घटा ही है। यह कुल बजट का 2.51% है, जो पिछले साल के 2.57% से कम है। यह सरकार के शिक्षा पर घरेलू उत्पादन के 6% तक ख़र्च करने की खोखली घोषणा से बहुत कम है। दूसरा, शिक्षा के बजट में से यू.जी.सी. का बजट पिछले साल के 6,409 करोड़ रुपए से 60 फ़ीसदी तक घटाकर 2,500 करोड़ रुपए कर दिया गया है। इससे छात्रों को मिलने वाले वज़ीफ़े और अन्य सुविधाओं में बड़ी कटौती की गई है। यह एक तरह से सरकार द्वारा घोषणा है कि वह जल्द ही यू.जी.सी. का औपचारिक रूप से अंत करने की तैयारी कर चुकी है। अध्यापकों, लेक्चररों की ख़ाली पड़ी लाखों भर्तियों को भरने के लिए कोई घोषणा नहीं की गई है, जिसका सीधा मतलब है कि सरकारी शिक्षा का भट्ठा और बैठेगा, भले ही वह स्कूली शिक्षा हो या कॉलेज, यूनिवर्सिटियों की शिक्षा हो।

बेरोज़गारी बढ़ाती मोदी सरकार

पिछले चुनावों में कम वोट मिलने से यह साफ़ हो गया था कि मोदी सरकार को भले ही फ़ालतू चर्चा के लिए ही सही, लेकिन इस बार के बजट में नौजवानों के लिए सबसे केंद्रीय मुद्दे रोज़गार को जगह देनी ही होगी, और वित्त मंत्री के बजट भाषण का पहला हिस्सा इसी मुद्दे पर केंद्रित था। लेकिन जैसी कि उम्मीद थी, सरकार ने रोज़गार देने की ज़ि‍म्मेदारी ख़ुद उठाने से पूरी तरह हाथ खड़े कर दिए हैं। तो फिर सवाल उठता है कि सरकार रोज़गार देने के लिए क्या योजना बना रही है? रोज़गार देने के लिए बजट में घोषित योजना में दो तरह की योजनाएँ रखी गई हैं।

पहले प्रकार की योजनाएँ रोज़गार से संबंधित सब्सिडियाँ हैं, जो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मालिकों को दी जाएँगी। महीने के एक लाख तक वेतन वाले कर्मचारियों को तीन कि़स्तों में 15,000 रुपए देने की योजना से फ़ायदा मुख्य रूप से औपचारिक क्षेत्र के एक नाममात्र हिस्से को ही होगा। सब्सिडी का दूसरा हिस्सा, जिसमें सरकार पी.एफ़. स्कीम लागू करने के बदले में कंपनी मालिकों को दो सालों के लिए 3,000 रुपए प्रति महीना देती रहेगी, इसका सीधा फ़ायदा मालिकों को मिलेगा।

योजनाओं के दूसरे भाग में सरकार ने नौजवानों के लिए प्रशिक्षण आदि पर सब्सिडी देने की घोषणा की है, जिसके तहत सरकार नौजवानों को ‘प्रशिक्षित’ करेगी, ताकि वे अधिक “रोज़गार लायक़” बन सकें। यानी इस योजना की घोषणा के बाद सरकार की सोच स्पष्ट समझ में आती है कि सरकार बेरोज़गारी के लिए ख़ुद को ज़ि‍म्मेदार नहीं मानती है, बल्कि उसका मानना है कि नौजवानों के पास ज़रूरी प्रशिक्षण नहीं है कि वे रोज़गार के लायक़ हो! इस योजना को सरकार की अन्य घोषणाओं के साथ जोड़कर देखें, जिनमें इसने देशी-विदेशी पूँजीपतियों को टैक्स रियायतें दी हैं, तो तस्वीर और साफ़ हो जाती है कि सरकार बेरोज़गारी की समस्या का हल निजी पूँजीपतियों को नौजवानों को नौकरियाँ देने के लिए “प्रोत्साहित” करने में देखती है।

जिस देश में 35 साल से कम उम्र के नौजवानों की संख्या कुल आबादी के 65% से अधिक हो, जिस देश में केवल यूनियन सरकार के विभागों के 9.64 लाख पद ख़ाली हों और राज्य सरकार के मिलाकर दसियों लाख अन्य पद ख़ाली हों, जहाँ 2014-22 के बीच सवा सात लाख सरकारी नौकरियों के लिए 22 करोड़ से अधिक नौजवान आवेदन करते हों और जहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे क्षेत्र में लाखों की संख्या में स्टाफ़ की कमी हो, वहाँ सरकार द्वारा पदों को भरने, खस्ता हालात ढाँचे को सुधारने के लिए नई भर्तियाँ करने के बजाय केवल बड़ी कंपनियों को सब्सिडी, टैक्स रियायतों के दरवाज़े-खिड़कियाँ खोल दिए गए हों कि वे इन योजनाओं से “प्रोत्साहित” होकर नए प्रोजेक्ट स्थापित कर सकें, नौजवानों को रोज़गार दें, तो भला ऐसी सरकार और ऐसी योजना से क्या उम्मीद की जा सकती है? यानी बेरोज़गारी के मुद्दे पर वित्त मंत्री की पहाड़ जितनी चर्चा के बाद नीचे से असल में एक चूहा ही निकला है!

रोज़गार के मुद्दे पर सरकार की जनविरोधी नीति को मनरेगा के बजट से भी समझा जा सकता है। मनरेगा योजना के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में 100 दिन का सरकारी काम मिलता है। हालाँकि यह काम गुज़ारे के लिए पूरी तरह से नाकाफ़ी है, इसमें हेराफेरी के कितने ही मामले सामने आते हैं, जिसके चलते इसका दायरा बढ़ाने, इसमें सुधार की माँग मनरेगा मज़दूरों के संगठन लगातार करते रहे हैं। लेकिन इस योजना के लिए 2024-25 में घोषित की गई 86,000 करोड़ रुपए की राशि लगभग पिछले साल के बराबर ही है, भले ही कुछ दिन पहले ही रिपोर्ट आ गई थी कि पिछले साल की इस राशि में से पहले चार महीनों में ही आधी राशि यानी 41,500 करोड़ रुपए ख़र्च किए जा चुके हैं यानी योजना के तहत काम की माँग बहुत ज़्यादा है, फिर भी मनरेगा सरकार द्वारा इस साल का बजट ना बढ़ाने का मतलब है कि बाक़ी आठ महीनों में 44,500 करोड़ रुपए की नाममात्र की राशि से ही काम चलाना होगा। यह एक तरह से इस योजना को तबाह करने वाला क़दम है, जिससे ग्रामीण क्षेत्र में थोड़ी-बहुत ही सही ग़रीब मेहनतकशों को राहत मिलती थी, जबकि ज़रूरत थी कि मनरेगा की तर्ज पर इससे व्यापक योजना शहरी क्षेत्र में भी शुरू की जाए।

इस तरह बजट में शहरी-ग्रामीण मज़दूरों और अन्य मेहनतकशों की बेहतरी के लिए कुछ भी नहीं है। जो है वो उनकी स्थिति और भी बदतर बनाने वाला है। पहले भी पूँजीपतियों के फ़ायदे के लिए बजट बनते आए हैं, उसी तर्ज पर यह बजट भी है। कहने की ज़रूरत नहीं है कि मोदी सरकार के इस बजट का सबसे ज़्यादा फ़ायदा एकाधिकारी पूँजीपति वर्ग को मिलेगा, लेकिन पूँजीपति वर्ग के अन्य हिस्सों के लिए भी ख़ूब फ़ायदे का प्रबंध किया गया है। यह बजट इसी बात का सूचक है कि लुटेरे हुक्मरान मेहनतकशों को कुछ भी थाली में परोसकर नहीं देंगे। मेहनतकश जनता को तो अपनी माँगों, सुविधाओं को लेने के लिए ख़ुद ही एकजुट संघर्ष के लिए आगे आना पड़ेगा।

मुक्ति संग्राम – अगस्त 2024 में प्रकाशित

09/08/2024

बांग्लादेश की सेना और उनकी सरकार देश पर कब तक शासन करेगी?

अगस्त 09, 2024 0

जनता की आवाज, ब्रेकिंग न्यूज सभी तक तेजी से पहुंचे नमस्कर चाहती हूँ मैं रादे स्याम रोडवेज निउस से वर्तमान समय में जो बंगलादेश में जनता का बिद्रू हुआ है उसके लिए बहुत करीब से जिम्मेदार भारत है क्योंकि वहाँ की जो प्रधानमंत्री है वो भारत समर्थक थी और जनता के उपर ताना साही लाद रही थी ऐसे कानून लाद रही थी जिससे जनता सामत नहीं थी और वहाँ पर छात्रों का आरच्छन के खिलाब भी द्रू महिनों से चल रहा था जिसको सुलझाने के जगएं बेगम ने उसको दमन करने का नित अपनाया जिससे वहाँ के छात्र और जनता बखला गए और उनके सत्ता को उखाड फेका और ऐसे हालात में जब देश के अंतर भी द्रू होता है तो कुछ आराजक किस्मे के जो संगठन होते हैं वो वहाँ पर समाज के दूसरे पच्च के लोगों को जो अलप संख्यक होते हैं उनके उपर हमला करते हैं उनको घरों पर हमला करते हैं और उनके जानमाल की सुरच्छा का एक बहुत बड़ा संकट खड़ा हो जाता है ऐसे समय में वहाँ की जो फोर्स है वो अंतरिम सरकार बनाने की कोशिस में लगी हुई है और अंतरिम सरकार बन जाती है और फिन अंतरिम सरकार अपना कारभार भी समान लेती है लेकिन जो बिद्रो होता है उसको सांत होने में काफी समय लगता है आईसा नहीं है कि आज सरकार बन जा और कलह जो है वो सड़क पर क्योंकि उनके समस्याओं का समाधान तो अस्वासन के जरिये ही कमपलीट होता है वास्तविक तोर में तो उसमें समय लगता है और फिन ऐसे जो अवाशनी तत्व होते हैं जो अपनी मंसा को साध लेते हैं किसी को हत्या करना है किसी को हमला करना है वो ऐसे भी करवाई को इसी के आड़ में अपना निभा लेते हैं भारत सरकार बहुत से मामलों में इसलिए जिम्मेदार है ताय कि प्रधान मंत्री के बहुत करीबी थी और वहाँ बंगलादेश में आड़ानी का बहुत बड़ा इंफराट्रक्चर पैसा लगा हुआ है और इससे भी ससंकित है कि अगर वहाँ की जनता ने विद्रू किया और अपने हाथ मिलिया तो एक संकट हो सकता है अलाकि वहाँ पर चीन ने भी अपना नजर बनाई हुए है और अमेरिका ने भी नजर बनाई हुए है इजराई से वहाँ फिलिस्टीन हमास लड़ रहा है यूक्रेन में रसिया से विद्रू हो रहा है वहाँ पर लड़ाई है और इधर इरान है तो ये बहुत सारे जो देश हैं वो एक दूसरे के खिलाब लड़ रहा हैं बलकि ये किया जाए कि पुरे दुनिया के बाजार प है और दोनों एक दूसरे के ऊपर कभजा करना चाहते हैं बाजार के ऊपर सब लोग हर देश में अपनी कठपुतली सरकार बनाना चाहते हैं कमजोर सरकार बनाना चाहते हैं इसी कारण बंगलादेश में एक भी द्रोह हुआ वहाँ पर हिंदुओं पर हो रहे हमले अलप संख्यकों पर हो रहे हमले निंदनी है मैं बंगलादेश की जनता से वहाँ की आने वाली समावेशी सरकार से बंगलादेश की सेना से अपील करता हूँ कि बंगलादेश में जितने भी अलप संख्यक रहने वाले हैं उनके उपर किसी भी तरह की जो हमला है उसको रोकने की पुड़ा प्रयास करें धन्यवाद