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सड़क समाचार पत्रिका(जनता की आवाज़) एक हिंदी समाचार वेबसाइट और मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है जो भारतीय राजनीति, सरकारी नीतियों, सामाजिक मुद्दों और समसामयिक मामलों से संबंधित समाचार और जानकारी प्रदान करने पर केंद्रित है। मंच का उद्देश्य आम लोगों की आवाज़ को बढ़ाना और उनकी चिंताओं और विचारों पर ध्यान आकर्षित करना है।

household supplies

06/03/2024

IF YOU A RESEARCHER OR SOCIAL SCIENCETIST CAN WATCH AND REVIE ARTICLE

मार्च 06, 2024 0

 It is essential to consider the roles and experiences of women for Rural culture learning. 

 It is important to recognize and include women's activities, behavior, and work in the study and understanding of rural culture. Women play a crucial role in shaping and maintaining cultural practices, traditions, and values within rural communities. By acknowledging and learning about women's contributions, we can gain a more comprehensive and accurate understanding of rural culture.

In order to fully appreciate and respect the diversity and richness of rural culture, it is essential to consider the roles and experiences of women. Their work, activities, and behaviors are integral to the functioning of rural communities and provide valuable insights into the social, economic, and cultural dynamics at play. By incorporating women's perspectives and experiences into our study of rural culture, we can cultivate a more inclusive and holistic understanding of these communities.

In conclusion, women's activities, behavior, and work are essential components of rural culture that should be prioritized in learning and research efforts. By recognizing and valuing the contributions of women, we can deepen our understanding of rural communities and promote a more inclusive and respectful approach to studying culture.

Please comments here.

05/03/2024

Akhilesh yadav Election Compain 2024 in Bihar state

मार्च 05, 2024 0

 Akhilesh yadav in Bihar Rally 

Desh Bachao Compain in 2024.                               Akhilesh yadav Election Compain in 2024 big rally attend with rjd party and said to rally speach that would be saved our country doing support opposition in election 2024 and Desh Bachao abhiyan.                                                       Rally Gathering Had Over Lak people listen akhilesh speach gets more attention public to this Rally.


क्दुनिया के सभी मजहबों में भारी मतभेद है-राहुल सांकृत्यायन

मार्च 05, 2024 0

 


धर्मों में आपस में मतभेद है =राहुल सांकृत्यायन

वैसे तो धर्मों में आपस में मतभेद है. एक पूरब मुंह करके पूजा करने का विधान करता है, तो दूसरा पश्चिम की ओर. एक सिर पर कुछ बाल बढ़ाना चाहता है, तो दूसरा दाढ़ी. एक मूंछ कतरने के लिए कहता है, तो दूसरा मूंछ रखने के लिए. एक जानवर का गला रेतने के लिए कहता है, तो दूसरा एक हाथ से गर्दन साफ करने को. एक कुर्ते का गला दाहिनी तरफ रखता है, तो दूसरा बाईं तरफ. एक जूठ-मीठ का कोई विचार नहीं रखता तो दूसरे के यहां जाति के भीतर भी बहुत-से चूल्हे हैं. एक खुदा के सिवाय दूसरे का नाम भी दुनिया में रहने देना नहीं चाहता, तो दूसरे के देवताओं की संख्या नहीं. एक गाय की रक्षा के लिए जान देने को कहता है, तो दूसरा उसकी कुर्बानी से बड़ा सबाब समझता है.

इसी तरह दुनिया के सभी मजहबों में भारी मतभेद है. ये मतभेद सिर्फ विचारों तक ही सीमित नहीं रहे, बल्कि पिछले दो हजार वर्षों का इतिहास बतला रहा है कि इन मतभेदों के कारण मजहबों ने एक-दूसरे के ऊपर जुल्म के कितने पहाड़ ढाए. यूनान और रोम के अमर कलाकारों की कृतियों का आज अभाव क्यों दीखता है? इसलिए कि वहां एक मजहब आया, जो ऐसी मूर्तियों के अस्तित्व को अपने लिए खतरे की चीज समझता था. ईरान की जातीय कला, साहित्य और संस्कृति को नामशेष-सा क्यों हो जाना पड़ा? क्योंकि, उसे एक ऐसे मजहब से पाला पड़ा, जो इंसानियत का नाम भी धरती से मिटा देने पर तुला हुआ था. मेक्सिको और पेरू, तुर्किस्तान और अफगानिस्तान, मिस्र और जावा – जहां भी देखिए, मजहबों ने अपने को कला, साहित्य, संस्कृति का दुश्मन साबित किया. और खून-खराबा? इसके लिए तो पूछिए मत. अपने-अपने खुदा और भगवान के नाम पर, अपनी-अपनी किताबों और पाखंडों के नाम पर मनुष्य के खून को उन्होंने पानी से भी सस्ता कर दिखलाया. यदि पुराने यूनानी धर्म के नाम पर निरपराध ईसाई बूढ़ों, बच्चों, स्त्री-पुरूषों को शेरों से फड़वाना, तलवार के घाट उतारना बड़े पुण्य का काम समझते थे, तो पीछे अधिकार हाथ आने पर ईसाई भी क्या उनसे पीछे रहे? ईसा मसीह के नाम पर उन्होंने खुल कर तलवार का इस्तेमाल किया. जर्मनी में ईसाइयत के भीतर लोगों को लाने के लिए कत्लेआम सा मचा दिया गया. पुराने जर्मन ओक वृक्ष की पूजा करते थे. कहीं ऐसा न हो कि ये ओक उन्हें फिर पथभ्रष्ट कर दें, इसके लिए बस्तियों के आस-पास एक भी ओक को रहने न दिया गया. पोप और पेत्रियार्क, इंजील और ईसा के नाम पर प्रतिभाशाली व्यक्तियों के विचार-स्वातंत्र्य को आग और लोहे के जरिए से दबाते रहे. जरा से विचार-भेद के लिए कितनों को चर्खी से दबाया गया- कितनों को जीते जी आग में जलाया गया. हिंदुस्तान की भूमि ऐसी धार्मिक मतांधता का कम शिकार नहीं रही है. इस्लाम के आने से पहले भी क्या मजहब ने बोलने और सुनने वालों के मुंह और कानों में पिघले रांगे और लाख को नहीं भरा? शंकराचार्य ऐसे आदमी जो कि सारी शक्ति लगा गला फाड़-फाड़कर यही चिल्ला रहे थे कि सभी ब्रह्म हैं, ब्रह्म से भिन्न सभी चीजें झूठी हैं तथा रामानुज और दूसरों के भी दर्शन जबानी जमा-खर्च से आगे नहीं बढ़े, बल्कि सारी शक्ति लगाकर शूद्रों और दलितों को नीचे दबा रखने में उन्होंने कोई कोर-कसर उठा नहीं रखी और इस्लाम के आने के बाद तो हिंदू-धर्म और इस्लाम के खूंरेज झगड़े आज तक चल रहे हैं. उन्होंने तो हमारे देश को अब तक नरक बना रखा है. कहने के लिए इस्लाम शक्ति और विश्व-बंधुत्व का धर्म कहलाता है, हिंदू धर्म ब्रह्मज्ञान और सहिष्णुता का धर्म बतलाया जाता है, किंतु क्या इन दोनों धर्मों ने अपने इस दावे को कार्यरूप में परिणत करके दिखलाया? हिंदू मुसलमानों पर दोष लगाते हैं कि ये बेगुनाहों का खून करते हैं, हमारे मंदिरों और पवित्र तीर्थों को भ्रष्ट करते हैं, हमारी स्त्रियों को भगा ले जाते हैं. लेकिन झगड़े में क्या हिंदू बेगुनाहों का खून करने से बाज आते हैं? चाहे आप कानपुर के हिंदू-मुस्लिम झगड़े को ले लीजिए या बनारस के, इलाहाबाद के या आगरे के, सब जगह देखेंगे कि हिंदुओं और मुसलमानों के छुरे और लाठी के शिकार हुए हैं- निरपराध, अजनबी स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे. गांव या दूसरे मुहल्ले का कोई अभागा आदमी अनजाने उस रास्ते आ गुजरा और कोई पीछे से छुरा भोंक कर चंपत हो गया. सभी धर्म दया का दावा करते हैं, लेकिन हिंदुस्तान के इन धार्मिक झगड़ों को देखिए, तो आपको मालूम होगा कि यहां मनुष्यता पनाह मांग रही है. निहत्थे बूढ़े और बूढ़ियां ही नहीं, छोटे-छोटे बच्चे तक मार डाले जाते हैं. अपने धर्म के दुश्मनों को जलती आग में फेंकने की बात अब भी देखी जाती है.

एक देश और एक खून मनुष्य को भाई-भाई बनाते हैं. खून का नाता तोड़ना अस्वाभाविक है, लेकिन हम हिंदुस्तान में क्या देखते हैं? हिंदुओं की सभी जातियों में, चाहे आरंभ में कुछ भी क्यों न रहा हो, अब तो एक ही खून दौड़ रहा है. क्या शक्ल देखकर किसी के बारे में आप बतला सकते हैं कि यह ब्राह्मण है और यह शूद्र? कोयले से भी काले ब्राह्मण आपको लाखों की तादाद में मिलेंगे और शूद्रों में भी गेहुएं रंग वालों का अभाव नहीं है. पास-पास में रहने वाले स्त्री-पुरुष के यौन संबंध, जाति की ओर से हजार रुकावट होने पर भी, हम आए दिन देखते हैं. कितने ही धनी खानदानों, राजवंशों के बारे में तो लोग साफ ही कहते हैं कि दास का लड़का राजा और दासी का लड़का राजपुत्र. इतना होने पर भी हिंदू धर्म लोगों को हजारों जातियों में बांटे हुए है. कितने ही हिंदू, हिंदू के नाम पर जातीय एकता स्थापित करना चाहते हैं. किंतु, वह हिंदू जातीयता है कहां? हिंदू जाति तो एक काल्पनिक शब्द है. वस्तुतः वहां है तो एक काल्पनिक शब्द है. वस्तुतः वहां है ब्राह्मण ब्राह्मण भी नहीं, शाकद्वीपी, सनाढ्य, जुझौतिया, राजपूत, खत्री, भूमिहार, कायस्थ, चमार आदि-आदि. एक राजपूत का खाना-पीना, ब्याह-श्राद्ध अपनी जाति तक सीमित रहता है. उसकी सामाजिक दुनिया अपनी जाति तक सीमित है. इसीलिए जब एक राजपूत बड़े पद पर पहुंचता है, तो नौकरी दिलाने, सिफारिश करने या दूसरे तौर से सबसे पहले अपनी जाति के आदमी को फायदा पहुंचाना चाहता है. यह स्वाभाविक है. जबकि चौबीसों घंटे जीने-मरने सब में साथ संबंध रखने वाले अपनी बिरादरी के लोग हैं, तो किसी की दृष्टि दूर तक कैसे जाएगी?

कहने के लिए तो हिंदुओं पर ताना कसते हुए इस्लाम कहता है कि हमने जात-पांत के बंधनों को तोड़ दिया. इस्लाम में आते ही सब भाई-भाई हो जाते हैं. लेकिन क्या यह बात सच है? यदि ऐसा होता तो आज मोमिन (जुलाहा), अप्सार (धुनिया), राइन (कुंजड़ा) आदि का सवाल न उठता. अर्जल और अशरफ का शब्द किसी के मुंह पर न आता. सैयद-शेख, मलिक-पठान, उसी तरह का ख्याल अपने से छोटी जातियों से रखते हैं, जैसा कि हिंदुओं के बड़ी जात वाले. खाने के बारे में छूतछात कम है और वह तो अब हिंदुओं में भी कम होता जा रहा है. लेकिन सवाल तो है – सांस्कृतिक और आर्थिक क्षेत्र में इस्लाम की बड़ी जातों ने छोटी जातों को क्या आगे बढ़ने का कभी मौका दिया? हिंदुस्तानियों में से चार-पांच करोड़ आदमियों ने हिंदुओं के सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक अत्याचारों से त्राण पाने के लिए इस्लाम की शरण ली. लेकिन, इस्लाम की बड़ी जातों ने क्या उन्हें वहां पनपने दिया? सात सौ वर्ष बाद भी आज गांव का मोमिन जमींदारों और बड़ी जातों के जुल्म का वैसा ही शिकार है, जैसा कि उसका पड़ोसी कानू-कुर्मी. सरकारी नौकरियों में अपने लिए संख्या सुरक्षित कराई जाती है. लेकिन जब उस संख्या को अपने भीतर वितरण करने का अवसर आता है, तब उनमें से प्रायः सभी को बड़ी जाति वाले सैयद और शेख अपने हाथ में ले लेते हैं. साठ-साठ, सत्तर-सत्तर फीसदी संख्या रखने वाले मोमिन और अंसार मुंह ताकते रह जाते हैं. बहाना किया जाता है कि उनमें उतनी शिक्षा नहीं. लेकिन सात सौ और हजार बरस बाद भी यदि वे शिक्षा में इतने पिछड़े हुए हैं, तो इसका दोष किसके ऊपर है? उन्हें कब शिक्षित होने का अवसर दिया गया? जब पढ़ाने का अवसर आया, छात्रवृत्ति देने का मौका आया, तब तो ध्यान अपने भाई-बंधुओं की तरफ चला गया. मोमिन और अंसार, बावर्ची और चपरासी, खिदमतगार, हुक्काबरदार के काम के लिए बने हैं. उनमें से कोई यदि शिक्षित हो भी जाता है, तो उसकी सिफारिश के लिए अपनी जाति में तो वैसा प्रभावशाली व्यक्ति है नहीं और बाहर वाले अपने भाई-बंधु को छोड़ कर उन पर तरजीह क्यों देने लगे? नौकरियों और पदों के लिए इतनी दौड़-धूप, इतनी जद्दोजहद सिर्फ खिदमते-कौम और देश सेवा के लिए नहीं है, यह है रुपयों के लिए, इज्जत और आराम की जिंदगी बसर करने के लिए.

हिंदू और मुसलमान फरक-फरक धर्म रखने के कारण क्या उनकी अलग जाति हो सकती है? जिनकी नसों में उन्हीं पूर्वजों का खून बह रहा है, जो इसी देश में पैदा हुए और पले, फिर दाढ़ी और चुटिया, पूरब और पश्चिम की नमाज क्या उन्हें अलग कौम साबित कर सकती है? क्या खून पानी से गाढ़ा नहीं होता? फिर हिंदू और मुसलमान को फरक से बनी इन अलग-अलग जातियों को हिंदुस्तान से बाहर कौन स्वीकार करता है? जापान में जाइए या जर्मनी, ईरान जाइए या तुर्की- सभी जगह हमें हिंदी और ‘इंडियन’ कहकर पुकारा जाता है. जो धर्म भाई को बेगाना बनाता है, ऐसे धर्म को धिक्कार! जो मजहब अपने नाम पर भाई का खून करने के लिए प्रेरित करता है, उस मजहब पर लानत! जब आदमी चुटिया काट दाढ़ी बढ़ाने भर से मुसलमान और दाढ़ी मुड़ा चुटिया रखने मात्र से हिंदू मालूम होने लगता है, तो इसका मतलब साफ है कि यह भेद सिर्फ बाहरी और बनावटी है. एक चीनी चाहे बौद्ध हो या मुसलमान, ईसाई हो या कनफूसी, लेकिन उसकी जाति चीनी रहती है. एक जापानी चाहे बौद्ध हो या शिंतो-धर्मी, लेकिन उसकी जाति जापानी रहती है. एक ईरानी चाहे वह मुसलमान हो या जरतुस्त, किंतु वह अपने लिए ईरानी छोड़ दूसरा नाम स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं. तो हम हिंदियों के मजहब को टुकड़े-टुकड़े में बांटने को क्यों तैयार हैं और इन नाजायज हरकतों को हम क्यों बर्दाश्त करें?

धर्मों की जड़ में कुल्हाड़ा लग गया है और इसीलिए अब मजहबों के मेल-मिलाप की भी बातें कभी-कभी सुनने में आती हैं. लेकिन क्या यह संभव है? ‘मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना’- इस सफेद झूठ का क्या ठिकाना है? अगर मजहब बैर नहीं सिखलाता, तो चोटी-दाढ़ी की लड़ाई में हजार बरस से आज तक हमारा मुल्क पामाल क्यों है? पुराने इतिहास को छोड़ दीजिए, आज भी हिंदुस्तान के शहरों और गांवों में एक मजहब वालों को दूसरे मजहब वालों के खून का प्यासा कौन बना रहा है? कौन गाय खाने वालों से गोबर खाने वालों को लड़ा रहा है? असल बात यह है- ‘मजहब तो है सिखाता आपस में बैर रखना. भाई को है सिखाता भाई का खून पीना.’ हिंदुस्तानियों की एकता मजहबों के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मजहबों की चिता पर होगी. कौए को धोकर हंस नहीं बनाया जा सकता. काली कमली धोकर रंग नहीं चढ़ाया जा सकता. मजहबों की बीमारी स्वाभाविक है. उसको मौत छोड़ कर इलाज नहीं. 

एक तरफ तो वे मजहब एक-दूसरे के इतने जबर्दस्त खून के प्यासे हैं. उनमें से हर एक एक-दूसरे के खिलाफ शिक्षा देता है. कपड़े-लत्ते, खाने-पीने, बोली-बानी, रीति-रिवाज में हर एक एक-दूसरे से उल्टा रास्ता लेता है. लेकिन, जहां गरीबों को चूसने और धनियों की स्वार्थ-रक्षा का प्रश्न आ जाता है, तो दोनों बोलते हैं.

गदहा गांव के महाराज बेवकफ बख्श सिंह सात पुश्त से पहले दर्जे के बेवकूफ चले आते हैं. आज उनके पास पचास लाख सालाना आमदनी की जमींदारी है, जिसको प्राप्त करने में न उन्होंने एक धेला अकल खर्च की और न अपनी बुद्धि के बल पर उसे छह दिन चला ही सकते हैं. न वे अपनी मेहनत से धरती से एक छटांक चावल पैदा कर सकते हैं, न एक कंकड़ी गुड़. महाराज बेवकूफ बख्श सिंह को यदि चावल, गेहूं, घी, लकड़ी के ढेर के साथ एक जंगल में अकेले छोड़ दिया जाए, तो भी उनमें न इतनी बुद्धि है और न उन्हें काम का ढंग मालूम है कि अपना पेट भी पाल सकें, सात दिन में बिल्ला-बिल्लाकर जरूर वे वहीं मर जायेंगे. लेकिन आज गदहा गांव के महाराज दस हजार रुपया महीना तो मोटर के तेल में फूंक डालते हैं. बीस-बीस हजार रुपये जोड़े कुत्ते उनके पास हैं. दो लाख रुपये लगाकर उनके लिए महल बना हुआ है. उन पर अलग डॉक्टर और नौकर हैं. गर्मियों में उनके घरों में बरफ के टुकड़े और बिजली के पंखे लगते हैं. महाराज के भोजन-छाजन की तो बात ही क्या? उनके नौकरों के नौकर भी घी-दूध में नहाते हैं और जिस रुपये को इस प्रकार पानी की तरह बहाया जाता है, वह आता कहां से है? उसे पैदा करने वाले कैसी जिंदगी बिताते हैं? वे दाने-दाने को मोहताज हैं. उनके लड़कों को महाराज बेवकूफ बख्श सिंह के कुत्तों का जूठा भी यदि मिल जाए, तो वे अपने को धन्य समझें. 

लेकिन यदि किसी धर्मानुयायी से पूछा जाए कि ऐसे बेवकूफ आदमी को बिना हाथ-पैर हिलाए दूसरे की कसाले की कमाई को पागल की तरह फेंकने का क्या अधिकार है, तो पंडित जी कहेंगे, ‘अरे वे तो पूर्व की कमाई खा रहे हैं. भगवान की ओर से वे बड़े बनाए गए हैं. शास्त्र-वेद कहते हैं कि बड़े-छोटे को बनाने वाले भगवान हैं. गरीब दाने-दाने को मारा-मारा फिरता है, यह भगवान की ओर से उसको दंड मिला है.’ यदि किसी मौलवी या पादरी से पूछिए तो जवाब मिलेगा, ‘क्या तुम काफिर हो? नास्तिक तो नहीं हो? अमीर-गरीब दुनिया का कारबार चलाने के लिए खुदा ने बनाए हैं. राजी-व-रजा खुदा की मर्जी में इंसान को दखल देने का क्या हक? गरीबी को न्यामत समझो. उसकी बंदगी और फरमाबरदारी बजा लाओ, कयामत में तुम्हें इसकी मजदूरी मिलेगी.’ पूछा जाए जब बिना मेहनत ही के महाराज बेवकूफ बख्श सिंह धरती पर ही स्वर्ग का आनंद भोग रहे हैं, तो ऐसे ‘अंधेर नगरी-चौपट राजा’ के दरबार में बंदगी और फरमाबरदारी से कुछ होने-हवाने की क्या उम्मीद?

उल्लू शहर के नवाब नामाकूल खां भी बड़े पुराने रईस हैं. उनकी भी जमींदारी है और ऐशो-आराम में बेवकफ बख्श सिंह से कम नहीं हैं. उनके पाखाने की दीवारों में इतर चुपड़ा जाता है और गुलाबजल से उसे धोया जाता है. सुंदरियों और हुस्न की परियों को फंसा लाने के लिए उनके सैकड़ों आदमी देश-विदेशों में घूमा करते हैं. ये परियां एक ही दीदार में उनके लिए बासी हो जाती हैं. पचासों हकीम, डॉक्टर और वैद्य उनके लिए जौहर, कुश्ता और रसायन तैयार करते रहते हैं. दो-दो साल की पुरानी शराबें पेरिस और लंदन के तहखानों से बड़ी-बड़ी कीमत पर मंगाकर रखी जाती हैं. नवाब बहादुर का तलवा इतना लाल और मुलायम है, जितनी इंद्र की परियों की जीभ भी न होगी. इनकी पाशविक काम-वासना की तृप्ति में बाधा डालने के लिए कितने ही पति तलवार के घाट उतारे जाते हैं, कितने ही पिता झूठे मुकदमों में फंसा कर कैदखाने में सड़ाए जाते हैं. साठ लाख सालाना आमदनी भी उनके लिए काफी नहीं है. हर साल दस-पांच लाख रुपया और कर्ज हो जाता है. आपको बड़ी-बड़ी उपाधियां सरकार की ओर से मिली हैं. वायसराय के दरबार में सबसे पहले कुर्सी इनकी होती है और उनके स्वागत में व्याख्यान देने और अभिनंदन-पत्र पढ़ने का काम हमेशा उल्लू शहर के नवाब बहादुर और गदहा गांव के महाराजा बहादुर को मिलता है. छोटे और बड़े दोनों लाट, इन दोनों रईसूल उमरा की बुद्धिमानी, प्रबंध की योग्यता और रियाया-परवरी की तारीफ करते नहीं अघाते. 

नवाब बहादुर की अमीरी को खुदा की बरकत और कर्म का फल कहने में पंडित और मौलवी, पुरोहित और पादरी सभी एक राय हैं. रात-दिन आपस में तथा अपने अनुयायियों में खून-खराबी का बाजार गर्म रखने वाले, अल्लाह और भगवान यहां बिलकुल एक मत रखते हैं. वेद और कुरान, इंजील और बाइबिल की इस बारे में सिर्फ एक शिक्षा है. खून चूसने वाली इन जोंकों के स्वार्थ की रक्षा ही मानो इन धर्मों का कर्तव्य हो और मरने के बाद भी बहिश्त और स्वर्ग के सबसे अच्छे महल, सबसे सुंदर बगीचे, सबसे बड़ी आंखों वाली हूरें और अप्सराएं, सबसे अच्छी शराब और शहद की नहरें उल्लू शहर के नवाब बहादुर तथा गदहा गांव के महाराजा और उनके भाई-बंधुओं के लिए रिजर्व हैं, क्योंकि उन्होंने दो-चार मस्जिदें, दो-चार शिवाले बनवा दिए हैं. कुछ साधु-फकीर और ब्राह्मण-मुजावर रोजाना उनके यहां हलवा-पूड़ी, कबाब-पुलाव उड़ाया करते हैं. गरीबों की गरीबी और दरिद्रता के जीवन का कोई बदला नहीं. हां, यदि वे हर एकादशी के उपवास, हर रमजान के रोजे तथा सभी तीरथ-व्रत, हज और जियारत बिना नागा और बिना बेपरवाही से करते रहे, अपने पेट को काट कर यदि पंडे-मुजावरों का पेट भरते रहे, तो उन्हें भी स्वर्ग और बहिश्त के किसी कोने की कोठरी तथा बची-खुची हूर-अप्सरा मिल जाएगी. गरीबों को बस इसी स्वर्ग की उम्मीद पर अपनी जिंदगी काटनी है. किंतु जिस स्वर्ग-बहिश्त की आशा पर जिंदगी भर के दुःख के पहाड़ों को ढोना है, उस स्वर्ग-बहिश्त का अस्तित्व ही आज बीसवीं सदी के इस भूगोल में कहीं नहीं है. पहले जमीन चपटी थी. स्वर्ग इसके उत्तर से सात पहाड़ों और सात समुद्रों के पार था. आज तो न उस चपटी जमीन का पता है और न उत्तर के उन सात पहाड़ों और सात समुद्रों का. जिस सुमेरु के ऊपर इंद्र की अमरावती व क्षीरसागर के भीतर शेषशायी भगवान थे, वह अब सिर्फ लड़कों के दिल बहलाने की कहानियां मात्र हैं. ईसाइयों और मुसलमानों के बहिश्त के लिए भी उसी समय के भूगोल में स्थान था. आजकल के भूगोल ने तो उनकी जड़ ही काट दी है. फिर उस आशा पर लोगों को भूखा रखना क्या भारी धोखा नहीं है?

अंधविश्वास, रूढ़िवाद व तमाम कुरीतियों के खिलाफ आवाज बुलंद करें और बेहतर समाज बनाने के लिए संघर्ष करें।

SUDAMA PONDAY MEMBER OF RURAL INDIA (05/03/2024)

Rural culture in India more people struggle with food and drinking water

मार्च 05, 2024 0

 


Rural culture in India more people struggle with food and drinking water. Have not received proper nutrition and healthy food in rural India. Proper nutrition problem is significant article for improvement and development work to any NGO. where live tribble communities in east-south India as like Bihar, Chhattisgarh, Jharkhand, orisha is significant area. Government Lanche for promote by many financial yojana as like agriculture loan, micro business loan kisan credit but not enough for this area requirement. So, we requested to national and Interntional NGO, Government, corporate community to help and develop rural culture in this area. 
about for more information on rural India please visit: RURAL CULTURE (google.com)

 Prem Bahadur (rural event's organizer) on 5/3/2024 from Mirzapur up. 

04/03/2024

राधे श्याम यादव समाज वैज्ञानिक

मार्च 04, 2024 0


 उत्तर प्रदेश मे लोक सभा की 80 सीट में सपा अगर पूरे मन से चुनाव लड़ती है और यादव और मुसलमान एक होकर वोट करते है तो 35 से 45 सीट जीत सकती है जैसे पूर्वचल मे जौनपुर आजमगढ / गाजीपुर इसी तरह बुन्देल । चन्दौली / मीरजापुर / सोनर्भद्र , / भदोही ज्ञानपुर / मऊ / देवरीया / सिद्धार्थ नगर। गोडा / बलरामपुर ,

इसी तरह बुन्देल खन्ड मे झासी हमीरपरा औराई ललीत प्र महोबा ऊरई . जहाँ सपा जीत सकती है

पश्चिमी क्षेत्र मे बदायू सम्भल / शाहजहाँ पुर . एटा , इटावा . फतेहपुर , अलीगढ , मेरठ

अवध पुरक्षेत्र मे कानपुर देहात ' फतेहपुर उचहार बारावकी सुलतानपुर / अयोध्या ' r रायबरेली अब आप सभी लोग इमानदारी से लड़ते है तो 35 से 45 लोक सभा की सीट सपा जीत सकती है। सभी DPA एक होजाओं यादव अकेले DPA नहीलड सकता है आप सभी कुर्मी कोईरी राजभर पाल चौहान मलाह सभी पिछडे + अनुसूचित जाति एक हो जाओ और 80 मे 80 सीट जीत सकते हो और अपना हक पक्षपाती समाज से छुन सकते हो -

पक्षपाती समाज मात्र 3% है और 90% मलाई खा जाति है आप सोचों

डा राधे श्याम यादव समाज वैज्ञानिक

03/03/2024

First list of 195 BJP Candidates

मार्च 03, 2024 0

 first list of 195 candidates for the upcoming Lok Sabha polls, BJP in its 2024 election campaign pledging to volunteer and contribute towards the goal of winning 400 seats in the elections.


The Bharatiya Janata Party (BJP) on Saturday released its first list of 195 candidates out of which 51 are from Uttar Pradesh, including Prime Minister Narendra Modi from Varanas

02/03/2024

Gautam Gambhir has requested BJP president

मार्च 02, 2024 0

 


Former cricketer and Delhi MP Gautam Gambhir has requested BJP president JP Nadda to relieve him of his political responsibilities on Saturday. The move comes as Gambhir aims to dedicate more time to his upcoming cricket commitments.

''I have requested Hon’ble Party President @JPNadda ji to relieve me of my political duties so that I can focus on my upcoming cricket commitments. I sincerely thank Hon’ble PM @narendramodi ji and Hon’ble HM @AmitShah ji for giving me the opportunity to serve the people. Jai Hind!'' said Gautam Gambhir

Akhiles Yadav attended a meeting of PDA — “Picchda

मार्च 02, 2024 0

 


Samajwadi Party chief Akhilesh Yadav said on Thursday that he has replied to the paper that came from CBI. His statement came amid speculation that he will not appear before the central investigating agency in an illegal mining case registered five years ago in which he is a witness.

“CBI is not calling for the first time. One has to face politics,” Akhilesh said on CBI notice.

Senior party leader as saying Yadav has “expressed his inability to appear before the CBI on Monday and asked the agency why it did not seek any information from him in the case for the past five years”.

The former Uttar Pradesh chief minister has, however, assured all help to the CBI in the probe, the leader said.

Yadav attended a meeting of PDA — “Picchda (backward classes), Dalit and Alpsankhyak (minorities)” — at the Samajwadi Party office in Lucknow.

01/03/2024

BJP FINAL 100 LOK SABHA CANDIDATES

मार्च 01, 2024 0

      first list of 100 Lok Sabha candidates final

 

The passage you provided discusses a crucial meeting held by the BJP to name candidates for the upcoming Lok Sabha elections. The meeting was attended by prominent leaders such as JP Nadda, Rajnath Singh, and Amit Shah. State leaders also participated in discussions about candidates for constituencies in their respective states. The party is strategizing to improve its prospects in the elections by targeting specific seats. Meetings have been held to draw up lists of potential candidates before the final decisions are made by the Central Election Committee (CEC).


The BJP has made significant decisions in finalizing its first list of 100 Lok Sabha candidates, including prominent figures like PM Narendra Modi, Union Home Minister Amit Shah, and Defense Minister Rajnath Singh. Additionally, the party is strategically focusing on reclaiming 'weak' seats lost in the 2019 general elections.

This move indicates a meticulous strategy to bolster the party's chances in the upcoming elections and secure key constituencies.





S.L.THAKUR ACTVITIES

मार्च 01, 2024 1


S.L.THAKUR ON MEDIA
RASTRIYA SAMAJWADI JANKRNTI PARTY DEMOND TO CLOSED ELECTION BOND FUNDING TO ANY POLITICAL PARTY SO THAT COULD BE TRANSPRENT IN ELECTION 2024 BY S L THAKUR

 the Chief Justice of India regarding the closure of election bond funding from Varanasi, the letter could include the following points:

Subject: Request for Closure of Election Bond Funding for Transparency in Elections

Dear Chief Justice,

I am writing to bring to your attention the pressing issue of election bond funding in our electoral system. As a concerned citizen and a member of the Rastriya Samajwadi Jan Kranti Party, I strongly believe that the current system of election bond funding undermines the transparency and integrity of our democratic process.

Election bond funding allows for anonymous donations to political parties, leading to potential misuse and lack of accountability. This loophole in our electoral system can be exploited by vested interests to influence election outcomes and undermine the will of the people.

Therefore, I urge you to take necessary steps to close the election bond funding system to ensure transparency and fairness in the upcoming 2024 elections. By eliminating this practice, we can uphold the principles of democracy and restore public trust in our electoral process.

I trust that you will give due consideration to this matter and take appropriate action to address this issue promptly.

Thank you for your attention to this important issue.

Sincerely, S L Thakur Rastriya Samajwadi Jan Kranti Party Varanasi 

S L Thakur from the Rastriya Samajwadi Jan Kranti Party is proposing to close election bond funding to ensure transparency in the 2024 elections. If you have any specific questions or need more information,  

PRIYANKA GANDHI PROTEST TO UP GOVERNMENT

मार्च 01, 2024 0


 Priyanka protested to the Uttar Pradesh government regarding the damage caused to poor people's homes in a recent action. She demanded immediate action to provide relief and assistance to those affected by the destruction of their homes. Priyanka called for accountability and justice for the affected individuals and urged the government to take necessary steps to prevent such incidents from happening in the future.

FOILING OPRATION LOTUS IN HIMANCHAL

मार्च 01, 2024 0
Priyanka Gandhi Played 'Pivotal' Role

According to sources, Priyanka Gandhi Vadra was instrumental in keeping the Congress party united and ensuring that its MLAs did not defect to the BJP. She reportedly worked behind the scenes to prevent any attempts by the BJP to poach Congress MLAs and destabilize the government in Himachal Pradesh.

Her efforts were praised by party leaders, who credited her for her strategic planning and tireless efforts in protecting the people's mandate in the state. Priyanka Gandhi Vadra's role in thwarting the BJP's 'operation Lotus' in Himachal Pradesh has been lauded as crucial in maintaining the stability of the Congress government in the state.

Overall, Priyanka Gandhi Vadra's involvement in Himachal Pradesh politics has been seen as a positive force for the Congress party, and her efforts have been recognized as pivotal in safeguarding the party's interests in the state

JNU NEWS: Massive Violence Erupts On Campus

मार्च 01, 2024 0

 A violent clash erupted at Jawaharlal Nehru University (JNU) in New Delhi on Sunday evening, leaving several students injured and campus property vandalized. The clash reportedly started between two student groups, the Left-backed All India Students' Association (AISA) and the right-wing Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP).

Videos and photos shared on social media showed masked individuals armed with sticks and rods attacking students and teachers on the campus. Several students, including JNU Students' Union president Aishe Ghosh, were reportedly injured in the violence.

The Delhi Police were called to the campus to control the situation, but the violence continued for several hours. The JNU administration has condemned the violence and called for an immediate end to the clashes.

The incident has sparked outrage and condemnation from politicians, activists, and students across the country. Many have called for a thorough investigation into the incident and for those responsible for the violence to be held accountable.

The clash at JNU is the latest in a series of violent incidents on college campuses in India, highlighting the growing polarization and intolerance in the country's educational institutions. It is a worrying sign of the deteriorating state of campus politics and the need for immediate action to address the underlying issues