सड़क समाचार पत्रिका (जनता की आवाज) 🌎: POLITICAL

सड़क समाचार पत्रिका(जनता की आवाज़) एक हिंदी समाचार वेबसाइट और मीडिया प्लेटफ़ॉर्म है जो भारतीय राजनीति, सरकारी नीतियों, सामाजिक मुद्दों और समसामयिक मामलों से संबंधित समाचार और जानकारी प्रदान करने पर केंद्रित है। मंच का उद्देश्य आम लोगों की आवाज़ को बढ़ाना और उनकी चिंताओं और विचारों पर ध्यान आकर्षित करना है।

household supplies
POLITICAL लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
POLITICAL लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

12/01/2025

भारत अपनी चुनाव प्रणाली में लोकतंत्र से दूर हो जाएगा

जनवरी 12, 2025 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज.        ' *एक* *राष्ट्र* *एक* *चुनाव* ': *फासीवादी* *एकात्मक* *शासन* *की* *ओर* *निरंकुश* *कदम* सीपीआई (एमएल) रेड स्टार

 
एक साथ चुनाव कराने के मुद्दे की जांच के लिए सितंबर 2023 में पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) ने 14 मार्च 2024 को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है। मोदी कैबिनेट ने 12 दिसंबर 2024 को एचएलसी के सुझावों को मंजूरी दे दी। सरकार ने संसद के चालू शीतकालीन सत्र में लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव के लिए मसौदा कानून पेश करने का फैसला किया है। चूंकि स्थानीय निकायों के एक साथ चुनाव के लिए राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन के लिए एक अलग संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता है, इसलिए इसे अलग से लिया जाएगा।
 
1950 में भारत को एक गणतंत्र के रूप में औपचारिक रूप से अपनाने के बाद, 1952, 1957, 1962 और 1967 के दौरान लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए। हालाँकि, कई मौकों पर लोकसभा और विधानसभाओं के समय से पहले भंग होने के कारण, उनके चुनाव अलग-अलग समय पर शुरू हुए। तब से इस ठोस हकीकत को समझते हुए राजनीतिक मुख्यधारा में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने पर कोई गंभीर चर्चा नहीं हुई है। और शासक वर्ग की राजनीति के चौतरफा क्षय और पतन के बावजूद, 1960 के दशक के बाद की अवधि में कई क्षेत्रीय और राज्य-स्तरीय पार्टियों का उदय हुआ, जो अक्सर क्षेत्रीय और राज्य-स्तर दोनों पर राज्यों के विशिष्ट मुद्दों की आकांक्षा रखते थे।
 
हालाँकि, आपातकाल के बाद की नवउदारवादी स्थिति में आरएसएस और उसके कई सहयोगियों के तेजी से विकास की शुरुआत राम जन्मभूमि आंदोलन से हुई, जिसकी परिणति 1992 में बाबरी मस्जिद के विध्वंस के रूप में हुई, जिसने देश में राजनीतिक आख्यान को बदल दिया। आरएसएस के अखिल भारतीय बहुसंख्यकवादी एकरूपीकरण अभियान को अपने राजनैतिक उपकरण भाजपा के साथ, बाजपेयी शासन के उत्थान के साथ बढ़ावा मिला। इसकी सबसे प्रतिगामी नवउदारवादी अप्रत्यक्ष कर व्यवस्था, पहले वैट और फिर जीएसटी की शुरुआत, जिसने कराधान पर राज्यों के संघीय अधिकारों को छीन लिया, ने इस एकात्मक कदम के लिए आर्थिक आधार तैयार किया। इससे अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ और एक साथ चुनाव के सबसे प्रबल समर्थक रहे आडवाणी जैसे नेताओं की कड़ी मेहनत से समर्थित, वाजपेयी शासन के तहत विधि आयोग, एकात्मक एजेंडे को दृढ़ता से आत्मसात करते हुए,1999 में ही लोकसभा और विधानसभा में एक साथ चुनाव के अपने प्रस्ताव के साथ आगे आया था। 
 
2014 में मोदी सरकार के आने के साथ, एक साथ चुनाव के विचार को एक प्रबल समर्थन मिला जब नीति आयोग, जिसने अगस्त 2014 में छह दशक से अधिक पुराने योजना आयोग की जगह ले ली। इसके लिए, 2017 में मोदी की अध्यक्षता में नीति आयोग ने एक वर्किंग पेपर प्रकाशित किया।जिसमें एक तरफा एक साथ चुनाव के कई लाभों पर प्रकाश डाला गया है जैसे कि चुनाव खर्च में कमी, मतदाता मतदान में वृद्धि, बेहतर प्रशासन, सार्वजनिक जीवन में व्यवधान कम होना, चुनाव की कम आवृत्ति और संबंधित लागत, आदि। इस पेपर ने चालाकी से हानिकारक परिणामों पर चुप्पी साध ली, जैसे कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल के फायदे, संघवाद को कमजोर करना और उपमहाद्वीपीय भारत की विविधता को खतरा, आदि।
 
एक साथ चुनावों के लिए संघीय-विरोधी शोर को मोदी.2 के बाद से और अधिक बढ़ावा मिला है, और स्पष्ट रूप से, हालांकि भाजपा के पास मोदी.3 के तहत संसद में बहुमत का आंकड़ा नहीं है, अखिल भारतीय एकात्मक अभियान बिना किसी रुकावट के तेज हो रहा है। सितंबर 2023 में कोविन्द समिति की नियुक्ति, मार्च 2024 में रिपोर्ट प्रस्तुत करना, दिसंबर 2024 में कैबिनेट की मंजूरी और संसद के शीतकालीन सत्र में इसकी शुरूआत, ये सब आरएसएस के उग्र हिंदूराष्ट्र आक्रमण से अविभाज्य रूप से जुड़े हैं . यदि इसका विरोध नहीं किया गया और इसे पराजित नहीं किया गया, तो यह देश और इसकी उपमहाद्वीपीय अनुपात की कई विविधताओं के लिए विनाशकारी होगा। और, 'एक राष्ट्र एक चुनाव' एजेंडा राष्ट्रीय मुद्दों की आड़ में राज्य के मुद्दों को खत्म कर देगा।
 
इस समय लोकसभा और विधानसभाओं के एक साथ चुनाव, विभिन्न भाषाई और जातीय समुदायों के सामने आने वाले विशिष्ट मुद्दों को दरकिनार करके और उन पर हावी होकर, अखिल भारतीय पार्टियों, विशेष रूप से केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी को लाभ पहुंचाएंगे, और राज्य-स्तरीय राजनीतिक ताकतों की प्रासंगिकता और प्रभाव को कम कर देंगे। यदि इसे लागू किया गया तो यह भारतीय राज्य के संघीय ढांचे के लिए हानिकारक होगा। दुनिया के सबसे अधिक आबादी वाले देश भारत में चुनावों में ईवीएम की उपलब्धता से जुड़े तार्किक मुद्दों पर अभी चर्चा होनी बाकी है। शुरुआती रिपोर्टों के मुताबिक, एक साथ चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग को ईवीएम की संख्या दोगुनी से ज्यादा करनी होगी, जिसके सफल होने पर कम से कम तीन साल का समय लगेगा। चूँकि EVM के भारतीय निर्माताओं के पास उत्पादन बढ़ाने के बाद भी मशीनों के उत्पादन को दोगुना करने की क्षमता नहीं है, विदेशी कंपनियाँ इस अंतर को भरने के लिए प्रवेश कर सकती हैं, विशेष रूप से चिप्स और अन्य महत्वपूर्ण सामग्रियों की खरीद के संबंध में, जिसके जरिए चुनाव कराने में अप्रत्याशित परिणाम हो सकते हैं।
 
सटीक रूप से, मुख्य मुद्दे पर आते हुए, 'एक राष्ट्र एक चुनाव' का विचार एक भाषा, एक संस्कृति, एक पुलिस इत्यादि जैसे समान कदमों के अनुरूप एकात्मक और संघवाद-विरोधी एजेंडे को देश पर जबरन थोपना है। यह बहुभाषी, बहु-सांस्कृतिक, बहु-जातीय और संघीय भारत के खिलाफ एक क्रूर, फासीवादी अभियान है। हम सभी लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और फासीवाद-विरोधी ताकतों और तमाम जनता से अपील करते हैं कि वे एकजुट होकर इस फासीवादी कदम को चुनौती देने और हराने के लिए आगे आएं।

पी जे जेम्स
महासचिव 
सीपीआई (एमएल) रेड स्टार

नई दिल्ली
15.12.2024

02/11/2024

राजनीतिक विषयों पर हरिश्चंद्र केवट की रिपोर्ट

नवंबर 02, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज           माननीय *क्या सिर्फ पूंजीपति, व्यापारी चुनाव लड़ेंगे और मुनाफा कमायेंगे*


                        आज देश को आजादी मिले 78 वर्ष बीत चुके हैं,इस बीच देश में कई सरकारें आईं और गईं, तथा चल रही है। सन् 1947 में जब देश को आजादी मिली थी, उस समय आजादी के नायकों का एक ही सपना था कि उन्हें स्वराज्य मिलेगा अर्थात अपना राज।अपने राज का मतलब था जो जहां है जो काम कर रहा है अपने मूल्यों मान्यताओं के साथ सम्मानजनक तरीके से जीवन जीयेंगे लेकिन हुआ क्या?आज का दौर भयंकर पूंजीवादी व्यवस्था से घिरा है,हर सरकार और सरकारी कर्मचारी बस पूंजीपतियों के लिए काम कर रहा है।आज सरकार और सरकारी कर्मचारी यह भुल चुके हैं कि यहां लोकतांत्रिक व्यवस्था है, सत्ता में पहुंचकर हर कोई अपने नियम कानून बनाकर काम कर रहा है, सरकारी कार्यालयों में जनता के साथ जो दुर्व्यवहार किया जाता है वह कल्पना से परे है।जिस अपमान और उपेक्षा का शिकार आम नागरिक करता है उससे कहीं भी नहीं लगता कि इस आजाद देश में उसके लिए कोई नागरिक अधिकार हैं।तमाम पीड़ा,उपेक्षा, ज़ुल्म,सितम सहकर भी लोग अपने पसीने से इस देश को सींचते जा रहें हैं और जनता की मेहनत की कमाई को लुटकर हर रोज सैकड़ों लोग करोड़पति बन रहें हैं, लखपति बन रहें हैं,भवन ,भूमि, आलीशान और विलासितापूर्ण जीवन जी रहें हैं।देश में असमानता का आलम करीब से देखना है तो हमारी शिक्षा व्यवस्था को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है कि व्यवस्था द्वारा कितना भयंकर षड्यंत्र रचा जा चुका है। लोगों को अनपढ़ रखो जिससे लोग सवाल न करें, ग़रीबी और बदहाली में जीने को विवश हो और उनको आसानी से बरगलाया जा सकें,उनको सस्ता मजदूर बनाया जा सके,उनके श्रम को लूटा जा सकें। व्यवस्था चाहतीं हैं कि लोगों के साथ में कलम कापी और किताब आएं बल्कि वर्तमान व्यवस्था चाहतीं हैं जनता को धन्ना सेठों की फैक्ट्रियों में पसीना बहा बहाकर, उनके लिए अय्याशी के सामान बनाते रहे।ऐसा नहीं कि यह खेल नया हैं बल्कि आजादी के पहले से ही अनवरत जारी है।सारी सरकारें पूंजिपतियों के पलड़े में झूलतीं रहीं, जनता के पलड़े में तो बस आते रहें लोक-लुभावने वादें और कभी न पुरे होने वाले सपने।
ऐसा नहीं की देश की जनता ने प्रतिरोध नहीं किया,हर वक्त इस देश में व्यवस्था की तानाशाही के खिलाफ आवाजें उठती रही है लेकिन इन उठने वाली आवाजों को दबाने के लिए जगह-जगह सत्ता पक्ष और पूंजीपतियों के दलाल लगे हुए हैं। जनता के बीच बनावटी चेहरा लेकर घूम रहें पूंजीपतियों के दलालों के कारण आज गैरबराबरी की खाई दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है, हालांकि इस गैरबराबरी के लिए और भी कारक जिम्मेदार हैं।

*जनता क्या करें?*

इस वर्तमान परिस्थिति से निकलने और अपने लिए सम्मानजनक जीवन जीने के लिए जनता को आगे आना होगा। जनता को अपना नेता चुनना ही होगा,वह नेता जो आम जनता के मुद्दे पर लड़ता हो,जो सामान्य लोगों की भांति जीवन जीता हों,जो दुसरो को अपना समर्थन नहीं बल्कि साथी मानता हों।

जननेताओं को निकल पड़ना होगा अपने परिवर्तन के विचारों के साथ,वे विचार जो वर्तमान व्यवस्था को बदलने में कारगर साबित हो और जो अभी के परिस्थितियों में गढ़े गए हों।किसी प्रचलित विचारों की पृष्ठभूमि पर नये विचार की बुनियाद बनाने से पहले बहुत बारीकी से चिंतन करना होगा।आज ज्यादातर नेतृत्वकर्ता पुराने विचारों के भंवर में फंसे हुए हैं, उन्हें उससे निकलकर एक तेज धार नदी सी बहते विचारों को आत्मसात करना होगा और दूसरे जननेताओं और जनता को साथ सम्मिलित करना होगा।

.......
.........
.........
जारी रहेगा।

हरिश्चंद्र केवट 
राजनीतिज्ञ 
9555744251

24/10/2024

दुनिया भर में राम सेतु का सच

अक्टूबर 24, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज.         
राजनीतिक कार्यकर्ता श्री आर.डी.सिंह

रामसेतू 18 लाख वर्ष पूर्व "tectonic plates" के घर्शन
द्वारा उत्पन्न हुआ, जो समुद्र तल तक गड़ा हुआ है |
जबकि मानव जाति के जन्मे हुए अभी 1लाख वर्ष भी
नही हुए, करोङो वर्षो पूर्व के डायनासौर्स (Dianasaurs) के अवशेष भी मिलगये मगर वानर सेना
का कोई अता पता नही | इस प्रकार के सेतू जापान-
कोरिया के बीच मे भी है, और इससे कई गुना बड़ा सेतु
तुर्की द्वीप मे भी है |
राम सेतु (Adams bridge) इसे अधिक पुराना होने के कारन आदम पुल भी कहाँ जाता है । राम सेतु (Adams
bridge) पर नासा ने रिसर्च कर बताया कि यह पुल
प्रकृति निर्मित है, मानव निर्मित नही । यह समुद्र में
पाये जाने वाले मूँगा (CORAL) में पाये जाने वाले
केल्शियम कार्बोनेट के छोड़े जाने से निर्मित
श्रंखला है । जिसकी लंबाई 30Km. है । नासा ने इसके सैम्पल लेकर रेडियो कार्बन परिक्षण से बताया कि
यहसेतु 17.5 लाख वर्ष पुराना है । मूंगा (Coral) समुद्र के
कम गहरे पानी में जमा होकर श्रंखला बनाते है । विश्व
में मूँगा से निर्मित ऐसी 10 श्रृंखलाएँ है इनमे से सबसे
बड़ी ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तट पर है । इसकी लंबाई
रामसेतु से भी कई गुणा अधिक 2500 Km है । विश्व की इन सभी दश मूँगा श्रंखलाओ को सेटेलाईट के
द्वारा देखा जा चूका है । नासा के रिसर्च अनुसार
रामसेतु जब 17.5 लाख वर्ष पुराना है, तो इसे राम
निर्मित कैसे कहाँ जा सकता है । जबकि मानव ने
खेती करना/कपडे पहनना 8000 हजार वर्ष ईसा पूर्व
सीखा है । मानव ने लोहा (Iron) की खोज 1500 ईसा पूर्व की है । मानव ने लिखना 1300 ईसा पूर्व
सीखा है । फिर #राम नाम लिखकर दुनियाँ के
पहले पशु सीविल इंजनियर भालू नल-निल ने इसे कैसे
बना डाला?

21/10/2024

एक नजर में बिहार की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर महापुरुषों की दुनिया में है

अक्टूबर 21, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज.         *🔹True Facts about BIHAR🔹*
_____________________________

*BIHAR* एक इकलौता राज्य जिसके
नाम से हमारे देश का
नाम बनता है .....
B- भारत , bharat 
I - इंडिया , india
H - हिन्दुतान , hindutan
A -आर्यावर्त , aryabrat
R - रिवा , riva , ये इंडिया का बहुत पुराना नाम है

Bihar ka capital ke naam se India ki sabhi misail ka naam hai.
P - Prithvi
A - Agni
T - Trisul
N - Naag
A - Aakash

जो बिहारी बाबू है !
वह इस मैसेज को फैला
दिजिए

कम से कम अपमान करने
वाले को पता चल जाए की
हम किसका अपमान कर रहे है
हम बिहार को झुकने नही देंगे चाहे कोई कितना भी
प्रयास कर ले

जय बिहार जय बिहार

*बिहार* - जिसने देश को पहला राष्ट्रपति दिया !

*बिहार* - जहाँ सबसे पहले महाजनपद बना अर्थात विश्व का पहला लोकतंत्र !

*बिहार* - जहाँ भगवान राम की पत्नी सीता का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ महाभारत के दानवीर कर्ण का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ भगवान् महावीर का जन्म हुआ, बुद्ध और महावीर को ज्ञान मिला !

*बिहार* - जहाँ सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ के राजा चन्द्रगुप्त मौर्य से लड़ने की हिम्मत सिकंदर को भी नही हुई !

*बिहार*- जहाँ का लिट्टी चोखा पूरी दुनिया में अंतरराष्ट्रीय लिट्टी चोखा के नाम से प्रसिद्ध है !

*बिहार* - जहाँ के राजा महान अशोक ने अरब तक हिंदुस्तान का पताका फहराया और उसका स्तम्भ आज देश का राष्ट्रीय चिन्ह है !

*बिहार* - जो गांधी जी का पहला प्रेरणादायक स्रोत बना जिसने आज़ादी की आधारशिला रखी (चंपारण) !

*बिहार* - जहाँ राजा जरासंध, पाणिनि (जिसने संस्कृत व्याकरण लिखा), आर्यभट्ट जिन्होंने शून्य, दशमलव और सूर्य सिद्धांत दिया, चाणक्य (महान अर्थशास्त्री), रहीम, कबीर का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ के नंदवंश से लड़ने की हिम्मत सिकंदर की भी नही हुई और बिना लड़े विश्वविजेता डर कर भाग गया !

*बिहार* - जहाँ के 80 साल के बूढ़े ने 1857 के क्रांति में दो बार अंग्रेजों को हराया, अंग्रेजो के दांत खट्टे कर दिए (बाबु वीर कुंवर सिंह) !

*बिहार* - जहाँ के गोनू झा के किस्से पुरे हिंदुस्तान में प्रसिद्ध है !

*बिहार* - जहाँ सम्पूर्ण क्रांति के जनक महान जय प्रकाश नारायण का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ जन नायक कर्पूरी ठाकुर जी का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ भिखारी ठाकुर (विदेशिया) का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ शारदा सिन्हा जैसी महान भोजपुरी गायिका का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ स्वामी सहजानंद सरस्वती, राम शरण शर्मा, राज कमल झा, विद्यापति, रामधारी सिंह दिनकर, रामवृक्ष बेनीपुरी, फणीश्वर नाथ रेणु , देवकी नंदन खत्री, इन्द्रदीप सिन्हा, राम करण शर्मा, महामहोपाध्याय पंडित राम अवतार शर्मा, नलिन विलोचन शर्मा, गंगानाथ झा, ताबिश खैर, कलानाथ मिश्र, आचार्य रामलोचन सरन, गोपाल सिंह नेपाली, बिनोद बिहारी वर्मा, आचार्य रामेश्वर झा, राघव शरण शर्मा, नागार्जुन आचार्य जानकी बल्लभ शाश्त्री जैसे महान लेखको का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ बिस्स्मिल्लाह खान का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ दशरथ मांझी जैसा Mountain Man का जन्म हुआ !

*बिहार* - जहाँ एक साधारण शिक्षक SUPER 30 जैसा निःशुल्क कोचिंग बिना किसी सहायता के चलाकर गरीब बच्चों को IIT में दाखिला दिलाता है !

*बिहार* - जहाँ आज भी दिलो में प्रेम बसता है !

*बिहार* - जहाँ  भी बच्चे अपने माँ - बाप के पैर दबाये बिना नही सोते !

*बिहार* - जहाँ से सबसे ज्यादा बच्चे देश की सबसे कठिन परीक्षा UPSC और IIT पास करते है !

*बिहार* - जहाँ के गाँव में आज भी दादा-दादी अपने बच्चो को कहानियां सुनाते है !

*बिहार* - जहाँ आज भी भूखे रह के अतिथि को खिलाया जाता है !

*बिहार* – जहाँ आज भी सबसे ज्यादा संयुक्त परिवार है !

*बिहार* - जहाँ के बच्चे कोई सुविधा न होते हुए भी देश में सबसे ज्यादा सरकारी नौकरी पाते है !

इसी *बिहार* के रहने वाले हैं ! तो क्यूँ न करे खुद के *बिहारी* होने पर गर्व !

 *बिहार* !!👍🏻👍🏻

06/10/2024

एस.एल.ठाकुर द्वारा अपने पार्टी नेता से की गई अपील

अक्टूबर 06, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज.       
राष्ट्रीय अध्यक्ष एस.एल.ठाकुर 

      ,🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 सम्मानित साथियों मैं एस,एल, ठाकुर सम्मानित ग्रुप के साथियों का प्रातः कालीन का इंकलाबी अभिवादन करता हूं साथ ही मैं एक बहुत ही प्रबल अपील आप सभी से करना चाहता हूं क्योंकि मैं सत्य के रास्ते पर चलकर के अग्नि परीक्षाअधिक जानकारी के लिए देने से भी पीछे नहीं हटता, आज मेरा यही आचरण सफलता की एक-एक सीढ़ी के तरफ नया इतिहास रचने की दिशा में अग्रसर है। जिसका उदाहरण आपके समक्ष है। भारतीय जीवन बीमा निगम के अंदर एक संघर्ष का इतिहास और उपलब्धियां का इतिहास है। जिसकी प्रामाणिकता के लिए आप हमसे या हमारे मित्रों से संपर्क करके संतुष्ट हो सकते या राष्ट्रीय अभिकर्ता जन क्रांति पत्रिका की प्रमाणिकता को देख सकते हैं। पूरे देश के अंदर लाखों, लाख अभिकरण का कार्य करते हुए अभिकर्ताओं एवं संस्था के हितों में संघर्ष और उसके माध्यम से उपलब्धियां का इतिहास रहा है। मेरे नेतृत्व में ऑल इंडिया लाइफ इंश्योरेंस एजेंट्स एसोसिएशन नमस्तेके बैनर के तहत दमनकारी भारत सरकार एवं प्रबंधन की नीतियों के विरोध, जी, एस, टी कर कानून, विनिवेश, निजीकरण सहित चार्ट ऑफ़ डिमांड पर। वर्षों, वर्षों तक संघर्ष धरना प्रदर्शन, काला दिवस, प्रबंधन का सामाजिक बहिष्कार, मानव श्रृंखला, पुतला दहन, सड़कों पर जुलूस, अध्यक्ष भारतीय जीवन बीमा निगम को ज्ञापन, भारत सरकार को ज्ञापन, कार्यालयों का घेराव, जिला अधिकारी महोदय के माध्यम से ज्ञापन, अनशन, आमरण, अनशन के रूप में पूरे देश के अंदर लाखों लाख अभिकर्ताओं में एक अपने नेतृत्व की पहचान संगठन की पहचान रही हैं। संविधान और कानून के दायरे में प्रबंधन से अधिकतर मांगों को मनवाने में संगठन सफल रहा यह है। सत्य के रास्ते पर इंकलाब की ताकत, विचारों की प्रबलता की ताकत यह मेरा आचरण है। कारण की मैं भ्रष्टाचारी अन्यायी, अत्याचारी से ना डरता हूं ना घबराता हूं। जिसकी प्रमाणिकता, सत्यापन आप द्वारा कभी भी हमसे या मेरे साथियों से मिलकर के किया जा सकता है। आई आई अन्य भ्रष्टाचार आगे दमनकारी नीतियों के विरोध हम संघर्ष के लिए आगे बढ़ते हैं मात्र एक ही शर्त है कि आपका समर्थन पूरी ईमानदारी से मेरे साथ हो फिर गारंटी है कि जीत तो अपनी होगी। 🇮🇳इंकलाब, जिंदाबाद 🇮🇳इंकलाब, जिंदाबाद।अधिक ताजा खबरों के लिए यहां क्लिक करें

30/09/2024

फ़िलिस्तीनी हिटलर जहुआ अराफ़ात

सितंबर 30, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज.          यह है, यासर अराफत की बेटी, जहुआ अराफत!              यासर अराफात की बेटी

फ़िलिस्तीनी हिटलर जहुआ अराफ़ात 
यासर अराफत को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है!

उन्होंने लाखों फिलिस्तीन युवकों को मौत के दलदल में धकेल दिया 

उन्हें सपने शब्ज बाग  दिखाएं और  मध्य पूर्व को आतंकवाद की आग में झोंक दिया

यह लिखने का कारण यह है कि दुनिया के सभी पिताओं की तरह, उन्हें भी अपनी बेटी की चिंता थी।

और उन्होंने फिलिस्तीन की “सेवा" करते हुए जो धन इकट्ठा किया था, उसमें से कुछ अपनी बेटी के लिए रखा।

ज्यादा नहीं, बस थोड़ा सा…,

आज के बाजार मूल्य पर उसकी कीमत मात्र ₹66,311 करोड़ है!

पाकिस्तान के कुल विदेशी मुद्रा भंडार से कई गुना!

यह कहना गलत नहीं होगा कि यासर खुराफात  की यह बेटी लंदन में एक सड़क की मालकिन है, क्योंकि उस सड़क के दोनों तरफ की ज़्यादातर संपत्तियाँ इसी महिला के नाम पर हैं।

पिछले कई सालों से वह पेरिस के एक बेहद महंगे इलाके में आलीशान हवेली में रह रही है और पिछले 25 सालों में उसने फिलिस्तीन का चेहरा भी नहीं देखा है।

उसे चार भाषाएं आती  है, लेकीन वह अरेबिक नही जानती!

संयुक्त राष्ट्र के निर्देशानुसार उसे शरणार्थी का दर्जा दिया गया है!

यह है जन्नत और जिहाद नामक उद्योग की हकीकत!

22/09/2024

बिहार और देश में दलित समुदाय के साथ मनुवादियों द्वारा हिंसा एक रिपोर्ट

सितंबर 22, 2024 0
सड़क समाचार: वाराणसी,आपका स्वागत है. ब्रेकिंग न्यूज           **नवादा* , *बिहार* : *महादलितों* *पर* *अत्याचार* *नीतीश* *सरकार*  *द्वारा* *मनुवादी* *फासीवादी* *ताकतों* *के* *तलवे* *चाटने* *का* *नतीजा*
 
 *कॉरपोरेट* - *भूस्वामी* - *भगवा* *मनुवादी* *जातिवादी* *गठजोड़* *के* *खिलाफ* *संघर्ष* *करें*
  
 *जाति* *जनगणना* *की* *मांग* *पर* *एकजुट* *हों**

- *जाति* *उन्मूलन* *आंदोलन* 
रोडवे न्यूज़ मैगजीन की बंडू मेश्राम से ताज़ा रिपोर्ट 


बिहार के नवादा जिले में 18 सितंबर को एक भयावह घटना घटी है। तथाकथित उच्च जाति के दबंगों ने(  प्राप्त रिपोर्ट के अनुसार इनमें यादव और दलित पासवान समुदाय के लोग भी  शामिल थे) कृष्णा नगर महादलित बस्ती में ग़रीब महादलितों के साथ मारपीट की, 40-50 घरों को आग लगा दी। इस हमले में महादलितों के घर जलकर खाक हो गए, उनकी संपत्ति नष्ट हो गई और उन्हें गाँव से भागने पर मजबूर कर दिया गया। इस घटना ने यह दिखाया कि आज भी समाज में जातिगत उत्पीड़न और आतंक गहराई से जड़ जमाया हुआ है। यह हमला न केवल जातिगत उत्पीड़न और जमीन  पर स्वामित्व की सच्चाई को उजागर करता है, बल्कि यह भी बताता है कि आज की कॉरपोरेट भगवा फासीवादी व्यवस्था,  निर्मम जातिव्यवस्था  का किस तरह फायदा उठाती है।

नवादा की घटना कोई एकाकी घटना नहीं है; भारत में दलितों पर होने वाले अत्याचारों का एक लंबा इतिहास है। हाल की ही कुछ घटनाओं पर नज़र डालें तो यह साफ़ हो जाता है कि आज भी देशभर में दलितों/ उत्पीड़ितों पर अत्याचार जारी है। 

-हाथरस, उत्तर प्रदेश (सितंबर 2020):19 साल की दलित लड़की के साथ बलात्कार और हत्या की घटना ने पूरे देश को हिला दिया था। इस मामले में न केवल पुलिस और  प्रशासन की मिलीभगत सामने आई, बल्कि फासिस्ट योगी आदित्यनाथ सरकार का रवैया भी पूरी तरह से जातिगत भेदभाव से प्रेरित दिखा। लड़की का रातों-रात अंतिम संस्कार कर दिया गया, ताकि घटना पर पर्दा डाला जा सके। इस घटना की रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों को उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने भीषण प्रताड़ित किया विशेषकर केरल के पत्रकार सिद्धिक कप्पन को जो कि निरपराध थे जेल में बरसों सड़ाया गया।यहां ,हाथरस कांड के बलात्कारी हत्यारे लोग राजपूत ठाकुर जाति के थे ,लेकिन  गोदी मीडिया ने इस बात का उल्लेख नहीं किया।

-गुजरात, ऊना (2016): चार दलित युवकों को मृत गाय की खाल उतारने के लिए सार्वजनिक रूप से पीटा गया और उन्हें जीप में बांधकर अर्ध नग्न अवस्था में घसीटा गया।ये क्रूर अत्याचार ,खुद को सांस्कृतिक संगठन कहने वाले संघ परिवार के आनुषंगिक संगठन के नेतृत्व में हुआ।

-उत्तर प्रदेश, गोहरी इलाहाबाद  में सामूहिक गैंग रेप और हत्याकांड( 2021):
गोहरी में योगी आदित्यनाथ सरकार के पहले कार्यकाल में एक दलित मजदूर के परिवार में पति, पत्नी,किशोरी बेटी और विकलांग बेटे की हत्या ,दबंग जाति के भूस्वामी परिवार के लोगों ने कर दी।हत्या के पहले मां और बेटी के साथ गैंग रेप किया गया। आज तक पुलिस ने दोषियों पर कार्रवाई नहीं की।

-उन्नाव कांड,उत्तर प्रदेश( 2020):
ये तो बहुत चर्चित कांड है जहां भाजपा का बाहुबली विधायक कुलदीप सिंह सेंगर ने दलित लड़की के साथ बलात्कार कर उसे जान से मारने की कोशिश की और उस लड़की के परिवार में कई लोगों का खून कर दिया।उस पर पूरी भाजपा सरकार का संरक्षण होने के कारण ,उसे गिरफ्तार कर मुकदमा चलाने में भी बहुत मुश्किलें सामने आई।आज तक हाथरस,गोहरी की तरह उन्नाव कांड में भी पीड़ितों को सही तरीके से न्याय नहीं मिल पाया है।
-तमिलनाडु, विल्लुपुरम (2021): दलित समुदाय के लोगों पर ऊँची जाति के लोगों ने हमला कर दिया। उन्हें जमीन और पानी जैसे बुनियादी संसाधनों से वंचित करने के लिए लगातार दबाव बनाया गया। दलितों को उनकी जमीनों से बेदखल करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए गए।
-उत्तर प्रदेश, औरैया (अप्रैल 2023): एक दलित परिवार पर उच्च जाति के लोगों ने सिर्फ इसलिए हमला किया क्योंकि उन्होंने गाँव के कुएँ से पानी लेने की कोशिश की थी। इस मामले में भाजपा सरकार की पुलिस ने कार्रवाई करने के बजाय दलित परिवार पर ही झूठे आरोप लगाए।
-मध्य प्रदेश, सागर (जून 2023): राज्य में भाजपा शासन काल के दौरान एक दलित युवक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई क्योंकि उसने ऊँची जाति के व्यक्ति के साथ बात करने की “जुर्रत” की थी। भाजपा शासित मध्य प्रदेश के सीधी जिले में  भाजपा के एक ब्राम्हण नेता ने आदिवासी युवक पर पेशाब कर दिया था।ये घटनाएं दर्शाती हैं कि कैसे आज भी दलितों को सामाजिक व्यवस्था में निचले पायदान पर रखा जाता है और उन्हें अपने मौलिक अधिकारों से वंचित किया जाता है।ज्यादातर जातिगत उत्पीड़न की घटनाएं भाजपा जहां सत्तासीन है वहां और मोदी सरकार के दस सालों से भी अधिक के शासन में हुए हैं,और अभी भी जारी हैं।

ऐसी घटनाएं बार-बार बताती हैं कि आज भी देश के अधिकांश हिस्सों में दलित और आदिवासी समुदाय जातीय अत्याचार का शिकार है। अगर आंकड़ों की बात करें तो, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की 2020 की रिपोर्ट के अनुसार, दलितों के खिलाफ अत्याचार के 50,291 मामले दर्ज हुए। मोदी सरकार के दस सालों में दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है।ये आंकड़े हमें इस कड़वी सच्चाई का एहसास कराते हैं कि सामाजिक न्याय और समानता के दावों के बावजूद, जातिगत उत्पीड़न की जड़ें हमारे समाज में आज भी गहरी हैं। आज भी ब्राम्हणवादी उच्च जातियों के पास अधिकांश कृषि भूमि का स्वामित्व है। दलितों को संपत्ति ,शिक्षा और जमीन से वंचित रखना मनुवादी जातिवादी व्यवस्था की वह कड़ी है, जो उन्हें न केवल आर्थिक रूप से कमजोर करती है, बल्कि सामाजिक रूप से भी उनके सम्मान और अधिकारों का हनन करती है। 

आज दलितों/ उत्पीड़ितों,आदिवासियों,गरीब मेहनतकश जनता,अल्पसंख्यकों विशेषकर मुसलमान जनता और महिलाओं के खिलाफ  घोर मनुवादी पितृसत्तात्मक बहुसंख्यकवादी  फासिस्ट दमन बहुत तेज हो गए हैं तो 
इसमें आश्चर्य नहीं  होना चाहिए।क्योंकि दुनिया के सबसे बड़े और सबसे पुराने फासीवादी संगठन आरएसएस के नेतृत्व में पूरे देश और समाज का फासीवादीकरण हो गया है।आरएसएस का वैचारिक आधार निर्मम मनुस्मृति है।जिसके अनुसार तमाम दलित/ उत्पीड़ित,पिछड़ा वर्ग,आदिवासी समुदाय और महिलाओं को मानव का दर्जा  नहीं बल्कि ताकतवर ब्राम्हणवादियों के गुलाम का  दर्जा प्रदान किया गया है।फासिस्ट संघ परिवार का हिंदुराष्ट्र ,महाभ्रष्ट कॉरपोरेट घराने अडानी अंबानी सरीखे धन्ना सेठों का हिंदुराष्ट्र है।जिसमें देश के 80 फीसदी बहुजनों की हालत कीड़े मकोड़े से ज्यादा नहीं है।मनुस्मृति आधारित इस हिंदुराष्ट्र का आधार है क्रूर जाति व्यवस्था,जिसे आरएसएस और उसके आनुषंगिक संगठन जायज ठहराते हैं। 1947 के पहले के उपनिवेषिक व्यवस्था / गुलामी के दौरान और  1947 के  बाद भी नव उपनिवेशिक व्यवस्था के तहत  शासक वर्गों(  साम्राज्यवाद के दलाल कॉरपोरेट पूंजीपतियों और भूस्वामी वर्ग ) ने जाति व्यवस्था और जातिगत शोषण को न सिर्फ बनाये रखा है, बल्कि इसे अपने फायदे के लिए और इससे तालमेल बिठाकर बेहतर इस्तेमाल भी कर रहा है। कॉरपोरेट पूंजीवाद और आरएसएस मनुवादी फासीवाद  का गठजोड़ एक ऐसी क्रूर जाति व्यवस्था बनाता है जिसमें ग़रीब दलितों/ उत्पीड़ितों को हमेशा शोषित और वंचित बनाए रखा जाता है। साम्राज्यवादी और कॉरपोरेट पूंजीवादी व्यवस्था का मुनाफा तभी सुरक्षित रहता है जब समाज में असमानता,नफ़रत और विभाजन बना रहे। जाति की दीवारें इस असमानता को बनाए रखने का सबसे मजबूत साधन हैं। ब्राम्हणवादी ऊँची जातियाँ, कॉरपोरेट धन्नासेठ  और सत्ता में बैठे लोग मिलकर ग़रीब दलितों की ज़मीनें हड़पते हैं, उन्हें कम मजदूरी पर काम करने के लिए मजबूर करते हैं और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास को रोकते हैं।

असल में भारत और नेपाल में जहां निर्मम जाति व्यवस्था मौजूद है वह दलितों/ उत्पीड़ितों जो कि समाज का बड़ा मेहनतकश वर्ग है के श्रम के अतिरिक्त मूल्य / बेशी मूल्य को लूटने का सबसे बड़ा आयोजन हजारों सालों से शासक वर्गों कर रहा है।

आज जब फासिस्ट आरएसएस  और उसके राजनैतिक उपकरण भाजपा जैसे फासिस्ट संगठन "हिंदू एकता" का नारा लगाते हैं, तो यह सवाल उठता है कि वे दलितों पर होने वाले अत्याचार पर चुप क्यों हैं। असल में, इन्होंने तो शूद्रों ( ओबीसी) या अति शूद्रों( दलित/ उत्पीड़ित) को कभी सनातनी हिंदू माना ही नहीं।सिर्फ चुनाव के समय इन्हें दलितों, उत्पीड़ितों,आदिवासियों और अन्य पिछड़े वर्गों की याद आती है।जब ये हिंदू खतरे में है कहकर मंदिर और कमंडल के पक्ष में लोगों को मंडल( बहुजन/ दलित राजनीति / दर्शन) से दूर करने का पुरजोर कोशिश करते हैं।इन पार्टियों की राजनीति ही  कॉरपोरेट धनिकों और ऊँची जातियों के प्रभुत्व को बनाए रखने के लिए है। ये संगठन केवल "हिंदू एकता" का मुखौटा पहनते हैं, लेकिन उनके असली एजेंडे में जातिगत भेदभाव और कॉरपोरेट पूंजीवादी हितों की सुरक्षा होती है। जब नवादा जैसी घटनाएँ होती हैं, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि ये पार्टियाँ दलितों के पक्ष में नहीं, बल्कि ऊँची जातियों के दबंगों,भूस्वामियों और पूंजीपतियों के साथ खड़ी हैं। यह उनका पाखंड और दोहरी नीति है।इसीलिए फासिस्ट संघ परिवार,जाति जनगणना का कट्टर विरोधी है।क्योंकि इससे इसके हिंदुराष्ट्र का गुब्बारा फट जायेगा।

नवादा की घटना से हमें यह सबक लेना होगा कि  मनुवादी जातिगत उत्पीड़न और कॉरपोरेट पूंजीवादी शोषण आपस में गहरे जुड़े हुए हैं। जब तक इस कॉरपोरेट भगवा मनुवादी व्यवस्था को चुनौती नहीं दी जाएगी, तब तक दलितों/ उत्पीड़ितों का शोषण जारी रहेगा।दूसरी महत्वपूर्ण बात है अन्य पिछड़े वर्गों और दलितों में से कुछ तबकों का अति दलित या महा दलितों के प्रति विरोध और उपेक्षा।आरएसएस यही  तो चाहता है कि  पहचान की राजनीति या सोशल इंजीनियरिंग के नाम पर समाज के 80 फीसदी दलित/ उत्पीड़ित , पिछड़ा वर्ग,आदिवासी समुदाय आपस में लड़ते रहें ।हरियाणा के नूह से लेकर मणिपुर तक संघ परिवार इसी नफ़रत और विभाजन के जहर  को फैला रहा है।आज जरूरत है महा दलितों या दलितों में जो पिछड़े हैं उन तबकों को भी दलितों के बराबर उचित प्रतिनिधित्व और सम्मान देने की। इसके लिए हमें जाति आधारित जनगणना की मांग को लोकप्रिय बनाते हुए देशव्यापी साझा अभियान चलाना होगा।
आज वक्त की पुकार है कि मनुवादी हिंदुत्व के खिलाफ तमाम दलित / उत्पीड़ित, पिछड़ा वर्ग,आदिवासी समुदाय,गरीब मेहनतकश जनता,अल्पसंख्यक समुदाय और महिलाएं एक होकर फौलादी एकता बनाएं और एक जातिविहीन धर्मनिरपेक्ष ,लैंगिक समानता और वैज्ञानिक चेतना युक्त समतावादी समाज के निर्माण के लिए साथ साथ  लड़ें।जाति और पूंजी का यह गठजोड़ न केवल दलितों, बल्कि पूरे मेहनतकश समाज के लिए खतरा है। इसे समाप्त किए बिना न तो समाज में सच्ची समानता आएगी और न ही सामाजिक न्याय।

यह समय है कि मेहनतकश शोषित पीड़ित जनता जाति और धर्म की दीवारों को तोड़कर एकजुट हो। यह केवल दलित समुदाय का मुद्दा नहीं है, यह पूरे समाज का मुद्दा है। कॉरपोरेट पूंजीवाद और  भगवा मनुवादी जातिवाद का ख़ात्मा करके ही हम एक ऐसे समाज की स्थापना कर सकते हैं, जहाँ समाज की 80 फीसदी गरीब शोषित/ उत्पीड़ित,  मेहनतकश जनता को समान अधिकार, सम्मान और न्याय मिले।जनता को लूटने वाले कॉरपोरेट भगवा मनुवादी फासिस्ट ताकतों का नाश हो।

—बंडू मेश्राम, एम के डासन,तुहिन
जाति उन्मूलन आंदोलन संयोजक मंडल की ओर से
( संपर्क 9425560952)

नई दिल्ली,22 सितंबर 2024